Sunday, April 6, 2014

Shri Panini Hrudayam-Third Adhyaaya - 1st and 2nd paadha


                                                          अथ तृतीय--अध्याय :

1.प्रत्यय : =Here after suffixes are dealt with upto the end of 5thअध्याय :।

2.पर : च =Suffixes are added after the words.

3.आदि--उदात्त : च =प्रत्यय : आदि--उदात्त : च स्यात्।

4.अनुदात्तौ सुप्--पितौ =But सुप् and पित् are आदि--अनुदात्तौ। eg.यज्ञस्य।

5.गुप्--तिज्--कित्--भ्य : सन् and 6.मान्--बध--दान्--शान्भ्य : दीर्ग : च अभ्यासस्य =For शूत्र 5 and 6 meaning is सूत्र--द्वय--उक्तेभ्य : सन् स्यात् मान्--आदीनाम्। जुगुप्सते। तितिक्षते। अभ्यासस्य इकारस्य दीर्घ : च। मीमांस्यते। बीभत्स्यते। 

7.धातो : कर्मण : समान--कर्तृकात्--इच्छायां वा =इषि कर्मण : एककर्तृकात् धातो : सन् प्रत्यय : वा 

स्यात्।पठितुम् इच्छति पिपठिषति। शिष्या : पठन्तु इति इच्छति गुरु :। कर्मण : किम् ? गमनेन इच्छति करणात् मा भूत् (इच्छायाम्)

8.सुप : आत्मन : क्यच् =इषि कर्मण :एषितृ संबन्धिन : सुप् अन्तात् इच्छायाम् अर्थे क्यच् प्रत्यय : वा स्यात्। ं

9.काम्यच् च =उक्तविषये काम्यच् स्यात्। पुत्रम् आत्मन : इच्छति पुत्रीयति।

10.उपमानात् आचारे =उपमानात्  कर्तु : सुप्--अन्तात् आचार--अर्थे  क्यच् स्यात्।  पुत्रम् इव आचरति छात्रं पुत्रीयति। विष्णूयति द्विजम्। 

11.कर्तु : क्यङ् सलोप : च =उपमानात् कर्तु : सुप्--अन्तात् आचार--अर्थे क्यङ् वा स्यात्।  स--अन्स्य

तु कर्तृ वाचकस्य लोप : वा स्यात्। यशायते। यशस्यते।

12.भृश--आदिभ्य : भव्य : च्वे लोप : च हल : =च्वि विषयेभ्य :भृश--आदिभ्य : भवति--अर्थे क्यङ् स्यात्। हल्--अन्तानाम् एषाम् लॊप : च। अभृश : भृश : भवति भृशायते। सुमनस्--सुमनायते।

13.लोहित--आदि--डाच्भ्य : क्यष् =लोहितायति। पटपटायते। reser 95th सूत्रof 3rd पाद of 1st अध्याय :।

14.कष्टाय क्रमणे =कष्ट शब्दात् उत्सहे अर्थे चतुर्थी--अन्तात् क्यङ् स्यात्। कष्टाय क्रमते कष्टायते।

15.कर्मण : रोमन्थ--तपोभ्यां वर्ति--चरो : कर्मभ्यां क्रमेण वर्तनायां चरणे च अर्थे क्यङ् स्यात्।  रोमन्थं वर्तयति =रोमन्थायते। तपस : परस्मैपदं च। तपस्यति , तपस्यते।     

16.बाष्प--ऊष्माभ्याम् उद्वमने =आभ्यां कर्मभ्यां क्यङ् स्यात्। बाष्पायते। ऊष्मायते।

17.शब्द--वैर--कलह--अभ्र--कण्व--मेघेभ्य : करणे =एभ्य : कर्मभ्य : करोति अर्थे क्यङ् स्यात्। शब्दायते। (शब्दायन्ते--मेघदूतम्।)

18.सुख--आदिभ्य : कर्तृ--वेदनायाम् =एभ्य : कर्मभ्य : वेदनायाम् अर्थे क्यङ् स्यात्। वेदन--कर्तु : एव चेत् सुख--आदीनि स्यु :। सुखं वेदयते =सुखायते। कर्तु : ग्रहणं किम् ? परस्य सुखम् वेदयते।

19.नम : वरिव : चित्रङ : क्यच् =करणे इति अनुवृत्ते : क्रिया--विशेषे पूजायां परिचर्यायां आश्चर्ये च। देवान् नमस्यति। वरिवस्यति गुरून्। चित्रीयते विस्मयते इति अर्थ :। विस्मापयते इति अन्ये।

20.पुच्छ--भाण्ड--चीवरात् णिङ् =उत्पुच्छायते। संभाण्डयते। संचीवरयते।

21.मुण्ड--मिश्र-श्लक्ष्ण--लवण-- व्रतवस्त्र--हल--कल--कृत--तूस्तेभ्य : णिच् =कृञ् अर्थे मुण्डयति। कृतं गृण्हाति =कृतयति। तूस्त =केशा ,जटा ,पापम्।तूस्तानि विहन्ति तूस्तयति।

22.धातो : एकअच : हल्--आदे : क्रिया--समभिहारे यङ् =पौन:पुन्यम् , भृश--अर्थ : च =क्रिया--

समभिहार :। तस्मिन् द्योत्ये एक--अच : हल्--अदे : यङ् स्यात्।

23.नित्यं कौटिल्ये गतौ =गति-अर्थात् कौटिल्य : एव यङ् स्यात् न तु क्रिया--समभिहारे। कुटिलं व्रजति =वावृज्यते।

24.lलुप--सद--चर--जप--जभ--दह--दश--गॄभ्य : भाव--गर्हायाम् =एभ्य : धातु--अर्थ--गर्हायाम् एव यङ् स्यात्। गर्हितं लुंपति लोलुप्यते। सासद्यते।

25.सत्य--आप--पाश--रूप--वीणा--तूल--श्लोक--सेना--लोम--त्वच--वर्म--वर्ण--चूर्ण--चुर--आदिभ्य : णिच् =     

एभ्य : णिच् स्यात्।     

26.हेतुमति च =प्रयोजक--व्यापारे प्रेषण--आदौ वाच्ये धातो : णिच् स्यात्।

27.कण्डू--आदिभ्य : यक् =एभ्य : धातुभ्य : नित्यं यक् स्यात् स्व--अर्थे। धातुभ्य : किम् ? प्रातिपदिकेभ्य : मा भूत्। कण्डू--आदय : द्विधा :। 1.धातु :। 2.प्रातिपदिकानि।

28.गुपू--धूप--विच्छि--पणि--पनिभ्य : आय : =एभ्य : आय : स्यात्। गोपायते।

29.ऋते : ईयङ् =ऋतीयते। ऋतीयांचक्रे।

30.कमे : णिङ् =कामयते।      

31.आयाद--आदय : आर्धधातुक--विवक्षायाम् आयाद--आदय : स्यु :।

32.सनआदि--अन्ता : धातव : =सनादय : धातव : कमे: : णिङ्--अन्ता : धातव : प्रत्यया : अन्ते येषां

ते धातु--सज्ञा : स्यु :। धातुत्वात् लट्--आदय :।

33.स्य--.तासी लृ--लुटो : =लृ इति ऌङ्--लिटो : ग्रहणम्। धातो : स्य--तासी एतौ स्त : लृ--लिटो :

पर :। शप्--आदि अपवाद :।

34.सिप् बहुलं लॆटि =लेटि सिप् बहुलं स्यात्।

35.कास् धातो : प्रत्ययात् आम् अमन्त्रे लिटि =कास् धातो : प्रत्यय--अन्तेभ्य : च आम् स्यात् न तु मन्त्रे।   

36.इजादे :(इच्--आदे :) गुरुमत : अनृच्छ : =इच्--आदि : य : धातु : गुरुमत--अनृच्छति अन्य : तत : आं स्यात् लिटि।

37.दयआय--आस : च =दय , आय , आस एभ्य : आम् स्यात् लिटि। अयांचक्रे। 

38.उषविद--जागृभ्य : अन्यतरस्याम् =एभ्य : लिटि आं वा स्यात्। ओषांचक्रे। उवोष।

39.भी--ह्री--भृ--हुवां श्लुवत् च =एभ्य : लिटि आं वा स्यात् आमि श्लौ इव कार्यं च। जुहुवांचकार। जुहाव।

40.कृञ् च अनुप्रयुज्यते लिटि =आम् अन्तात् कृभ्व : तयो : अनुप्रयुज्यन्ते।

41.विदांकुर्वन्तु इति अन्यतरस्याम् =वेत्ते : लोट्यां गुणा--अभाव : लोट : लुक् लोट् अन्तकरोति अनुप्रयोग : च वा निपात्यते।

42.अभ्युत्सादयां--प्रजनयां--चिकयां रमयाम् आक : पावयां--क्रियात्--विदाम्--अक्रन्--इति छन्दसि =आद्येषु चतुर्षु लुङि आम् अक इति अनुप्रयोग :। रमयाम् आक : =अरीरमत्। विदाम् अक्रन् =

अवेदिषु :। प्रजनयाम् अक : =प्राजीजनत्। चिकयाम् आक : =अचेषीत्। चिनोतेतराम्।

43.च्लि लुङि =लुङि च्लि स्यात्।

44.च्ले : सिच् =इचौ इतौ च्ले :।

45.शल : इक्-- उपधात् अनिट : क्स : =इक् उपध : य : शल : अन्त : तस्मात् अनिट : च्ले : क्स आदेश : स्यात्। अघृक्षत।

46.श्लिष : आलिङ्गने =आश्लिक्षत् कन्यां देवदत्त :।

47.न दृश : =दृशे : च्ले : क्स : न। अद्राक्षीत्।

48.णि श्रि--द्रु--स्रुभ्य : कर्तरि चङ् =णि अन्तात् एभ्य : च्ले : चङ् स्यात् कर्तरि अर्थे लुङ् परे। काम + इ + अ + त इति स्थिते।

49.विभाषा धेट्श्व्यो : =आभ्यां च्ले : चङ् वा स्यात् चङ् परे कर्तृ--वाचिनि लुङ् । चङ् इति द्वित्वम्। अदधत्। अधताम्।

50.गुपे : छन्दसि =च्ले : चङ् वा। गृहान् अजूगुपतं युवम्। अगौप्तम् इति अर्थ :। 

51.नोनयति--ध्वनयति--एलयति--अर्दायतिभ्य : च्ले : चङ् न =मा त्वायतो जरितु : काममनूनयी :। मात्वग्निर्ध्वनयीत्।

52.अस्यति--वक्ति-ख्यातिभ्य : अङ् =एब्य : च्ले : अङ्। अख्यत्। अह्यत। अक्शासीत्। अक्शास्त।

53.लिपि सिचि ह्व : च =एभ्य : च्ले : अङ् स्यात्। अह्वत्। अह्वतां अह्वन्।

54.आत्मनेपदेषु अन्यतरस्याम् =अत : लोप :। अह्वत्। अह्वास्त।

55.पुष--आदि--द्युत--द्यृ--लृदित : परस्मैपदेषु =श्यन् विकरण पुष-आदे : द्युतआदे : लृदित : च परस्मैपदेषु च्ले : अङ् स्यात्। अघसत्।

56.सर्ति--शास्त्यर्तिभ्य : च =एभ्य : च्ले: अङ् स्यात् कर्तरि लुङि।

57.इरित : वा =इरित : धातो : च्ले : अङ् वा स्यात् परस्मैपदे परे। (च्युतिर्) अच्युतत्। अच्योतीत्।

58.जृस्तम्भुमुचुम्लुचुग्रुचुग्लुचुग्लच्चुश्विभ्य : च =एभ्य : च्ले : अङ् वा स्यात्। अम्रुचत्। अम्रोचीत्।

59.कृ--मृ--दृ--रुहिभ्य : छन्दसि =च्ले :अङ् वा। इदं तेभ्य : अकरं नम :।

60.चिण् ते पद : =पद : च्ले : चिण् स्यात् त शब्दे परे। प्रण्यपादि। अपत्साताम्। अपत्सत। 

61.दीप--जन--बुध--पूरित--आयि--आप्यायिभ्य : अन्यतरस्याम् =एभ्य : च्ले : चिण् वा स्यात्। अप्यायि। अप्यायिष्ट।

62.अच : कर्म--कर्तरि =अच् अन्तात् च्ले : चिण् वा स्यात् कर्म--कर्तरित शब्दे परे। अकारि। अकृत।63.दुह : च =अदोहि। अदुग्ध। अधृक्षत।

64.न रुध : =अस्मात् च्ले : चिण् न कर्म--कर्तरि। अवारुद्ध गौ :। कर्म--कर्तरि किम् ? । अवारोधि

गौ : अगोपेन।  

65.तप : अनुतापे च =तप : च्ले : चिण् न स्यात् कर्म--कर्तरि अनुतापे च। अन्वतप्त पापेन।

66.चिण् भाव--कर्मणो : =च्ले : चिण् स्यात् भाव--कर्म--वाचिनि  शब्दे परे। उपभावि। अभविष्यत।

67.सार्वधातुके यक् =धातो : यक् प्रत्यय : स्यात् भाव--कर्म--वाचिनि सार्वधातुके परे। भाव : भावना उत्पादना क्रिया। (त्वया, मया, अन्यै : च।) भूयते। बभूवे।

68.कर्तरि शप् =कर्तरि अर्थे सार्वधातुके परे धातो : शप् स्यात्। शपौ इतौ।

69.दिव--आदिभ्य : श्यन् =कर्तरि अर्थे सार्व्दातुके परे धातो : श्यन् स्यात्। शनौ इतौ। हलि च इति दीर्घ :। दीव्यति।

70.वा भ्राश्--म्लाश--भ्रमु--क्रमु--क्लमु--त्रसि--त्रुटि--लष : =एभ्य : कर्तरि अर्थे सार्वधातुके परे श्यन् वा स्यात्। क्रामति। क्राम्यति।

71.यस : अनुपसर्गात् =यसति। यस्यति। उपसर्गात् प्रयस्यति।

72.संयस : च =संयसति, संयस्यति।

73.सु--आदिभ्य : श्नु : =शि--इत्। सुनोति, सुनुत :, सुन्वन्ति।

74.श्रुव : शृ च =श्रुणोति। शृणोति।

75.अक्ष : अन्यतरस्याम् =अक्ष्णोति। अक्षति।

76.तनूकरणे तक्ष : =तक्ष्णोति, तक्षति वा काष्ठम्। तनूकरणे किम् ? वक्भि : संतक्षति। भर्त्स्यति इति अर्थ :।

77.तु--आदिभ्य : श : =तुदतु, तुदते।

78.रुदआदिभ्य : श्नम् =शित् and मित्। मित् अच : अन्त्यात् पर :। नित्यत्वात् गुणं बाधते। रुणद्धि।

79.तनआदि कृञ्भ्य : उ : =तनोति, करोति। तनुते, कुरुते।

80.धिन्--विकृण्व्यो : अ च =अनयो : अकार : अन्त--आदेश :। उ प्रत्यय : च शप् विषये। धिनोति, कृणोति। धिति प्रीणन--अर्थम्। 

81.क्र्य--आदिभ्य : श्ना =क्रीणाति। ई हलि अघो : क्रीणीत :।

82.स्तम्भु--स्तुम्भु--स्कम्भु--स्कुम्भु--स्कुञ्भ्य : श्नु : च =चात् श्ना। स्कुनोति। स्कुनुते। स्कुनाति। स्कुनीते।

83.हल: श्न : शानच् झौ =हल : परस्य श्न : शानच् झौ  परे। स्तभान। स्तुभान।। स्कभान।स्कुभान।

84.छन्दसि शायच् अपि =अपि शब्दात् शानच्। हृ--ग्रहो : भ : छन्दसि इति हस्य भ :। गृभाय जिह्वया मधु। बधान देव सवित :। अनिदितम् इति बध्नाते : न लोप :। गृभ्णामि ते। मध्वा जभार्।

85.विकरणानां बहुलं व्यत्यय : स्यात् छन्दसि। अण्डा शुष्णस्य भेदते। भिनत्ति इति प्राप्ते। जरसा मरते पति :। म्रियते इति प्राप्ते।

86.लिटि आशिषि अङ् =आशीर्लिङि परे धातो : अङ् स्यात् छन्दसि। वच उम्। मन्त्रं वोचमाग्नये।

87.कर्मवत् कर्मणा तुल्यक्रिय : =कर्मस्थया क्रियया तुल्य--क्रिय : कर्ता कर्मवत् स्यात्। कार्यअतिदेश  अयम्। तेन यक्--आत्मनेपद--चिण् चिण्वत् इट : स्यु :। कर्तु : अभिहितत्वात् प्रथमा। पच्यते ओदन :। भिद्यते काष्ठम्। अपाचि। अभेदि।

88.तपस्तप : कर्मकस्य एव =कर्ता कर्मवत् स्यात्। विधि--अर्थम् इदम्। एव--कार : तु व्यर्थम् इति वृत्ति--अनुसारिण :। तप्यते तप : तापस :। तप : कर्मकस्य इति किम् ? उत्तपति सुवर्णं सुवर्णकार :।

89.न दुह--स्नु--नमां यक् चिणौ =एषां कर्म--कर्तरि यक् चिणौ न स्त :। गौ : पय : दुग्धे।

90.कुषि--रजो : प्राचां श्यन् परस्मैपदं च =अनयो : कर्मकर्तरि न यक् किन्तु श्यन् परस्मैपदं च।कुषयति, कुष्यते पाद : स्वय एव। रज्यति, रज्यते वस्त्रम्। 

91.धातो : ==आतृतीय-अध्याय--समाप्ते : अधिकार : अयम्।

92.तत्र उपपदं समीपस्थम्।

93.कृत्--अतिङ् =सन्निहिते धातु--अर्थे तिङ् भिन्न : प्रत्यय : कृत् संज्ञ : स्यात्।

94.वा सरूप : अस्त्रियाम् =परिभाषा इयम्। अस्मिन् धातु--अधिकारे असरूप :अपवाद : प्रत्ययउत्सर्गस्य बाधक : वा स्यात्।

95.कृत्या : =अधिकार : अयम्। ण्वुल : प्राक्।  

96.तव्यतव्यानीयर : =धातो : एते प्रत्यया : स्यु :। तकार--रेफौ स्वर--अर्थौ। एधितव्यम्। एधनीयम्। भावे चौ सर्गिकम् एकवचनं च। क्लीबत्वं च।चेतव्य :।(चेतव्यम्) चयनीय :।(चयनीयम्) वसौ तव्यत् कर्तरि णिच्। वास्यम्। वास्तव्यम्।

97.अच  यत् =अच् अन्तात् धातो : यत् स्यात्। चेयम्। जेयम्। पेयम्।

98.पो : अत् उपधात् =पवर्ग अन्तात् अत् उपधात् यत् स्यात्।(ण्यत : अपवाद :।) शप्यम्। लभ्यम्।

99.शकि सहो च =शक्यम्। सह्यम्।(सह्यगिरि)

100.गदमद--चर--यम : च अनुपसर्गे =गयम्। मद्यम्। चर्यम्। यम्यम्।  

101.अवद्यपण्य--वर्या--गर्ह्य--पणितव्य--निरोधेषु =अवद्यम् =पापम्। गर्हे किम् ? अनूद्यं गुरु--नाम। पण्या गौ : व्यवहर्तव्या इति। पाण्यम् अन्यत् =स्तुत्यम्। अनिरोध : =अप्रतिबन्ध :। तस्मिन् विषये। शतेन वर्या कन्या। वृत्या अन्या।

102.वह्यं करणम् =वह्यन्ति अनेन इति शकटम्। वह्यं किम् ? वाह्यं वोढव्यम्।

103.अर्य : स्वामी--वैश्ययो : =अर्य : स्वामी। अर्य : वैश्य :। अनयो : किम् ? आर्य : ब्राह्मण : प्राप्तव्य :।

104.उपसर्या काल्या प्रजने =गर्भ- ग्रहणे प्राप्त--काला चेत् इति अर्थ :। उपसर्या गौ :। प्रजने काल्या इति किम् ? उपसर्या काशी प्राप्तव्या इति अर्थ :।

105.अजर्यं संगतम् =नञ् पूर्वात् जीर्यते : कर्तरि यत् संगतं चेत् विशेष्यम्। न जीर्यति इति अजर्यम्। (भावे अजार्यं संगतन) तेन संगत्म् आर्येण राम--अजर्यं कुरु  इति भट्टि :। मृगै : अजर्यं जरसा उपदिष्टम् अदेह--बन्धाय पुन : बबन्ध। इति अत्र तु संगतम् इति विशेष्यम् अध्याहार्य। संगतं किम् ? अजरित : कम्बल :।(अजरिता) 

106.वद : सुपि क्यप् च भावे =ब्रह्मोद्यं। ब्रह्मम---वद्यम्। ब्रह्म वेद :। तस्य वदनम् इति अर्थ :।

107.भुव : भावे =ब्रह्मभूयम्। भव्यम्। अनुपसर्ग एव। अनुभव्यम्।

108.हन : त च =ब्रह्-हत्या। स्त्रीत्वं लोकात्।

109.एति--स्तु--शास्--वृ--दृ--जुष : क्यप् =इत्य :। स्तुत्य :। शास् इदङ् हलो :। शिष्य :।

वृञ् =वृत्य :। दृत्य :। जुष्य :।

110.ऋत् उपधात् च अकॢपि चृते : =वृत्यम्। वृध्यम्। कॢ--चृत्यो : तु कल्प्यम्, चर्त्यम्। अत्र ऌ =lu.   

111.ई च खन : =चात् क्यप्। खेयम्। आत् गुण :।

112.भृञ : असंज्ञायाम् =भृत्या : कर्मकारा :। सम : च बहुलम्। संभृत्य :। संभार्या नाम क्षत्रिया :।  भार्या वधू इति।

113.मृजे : विभाषा =मृजे : क्यप् वा स्यात्। पक्षे ण्यत्। मृज्य :। मार्ग्य :।

114.राजसूय--सूर्य--मृषोद्य--रुच्य--कुप्य--कृष्टपच्य--अव्यध्या  =एते सप्ता : क्यप्--अन्ता : निपात्यन्ते।

115.भिद्य--उद्घ्यौ नदे =भिदे :उज्झे : च क्यप्। उज्झे : घत्वं च। भिनत्ति कूलम् इति भिद्य :। उज्झ : इति उदकम् =उद्घ्य :।

116.पुष्य--सिद्ध्यौ नक्षत्रे =पुष्यन्ति अर्था : अस्मिन् इति पुष्या :। सिद्ध्यन्ति अस्मिन् इति सिद्धा :।

117.विपूय---विनीय---जित्या मुञ्ज---कल्क--हलिषु =विपूय : शोधयितव्य :। कल्क =पापम्। जित्या कष्टेन क्रष्टव्या।(कृष्टव्या)

118.प्रति--अपिभ्यां ग्रहे : =छन्दसि इति वक्तव्यम्। प्रतिगृह्यम्। अपिगृह्यम्। लोके प्रतिग्राह्यम्, अपिग्राह्यम्।

119.पद---अस्वैरि---बाह्या---पक्ष्येषु च =अवगृह्यम्। प्रगृह्यम् =पदम्। अस्वैरि परतन्त्र : =गृह्यका :। बाह्यायाम् =ग्राम--गृह्या सेना। पक्षे भाव : =पक्ष्य :। आर्यगृह्य : =आर्यै : गृह्य :। तत्---पक्ष---आश्रित : इति अर्थ :।

120.विभाषा कृ---वृषो : =कृत्यम्। वृष्यम्। 

121.युग्यं च पत्रे =पत्रं वाहनम्। युग्यौ गौ :। अत्र क्यप् कुत्वं च निपात्यते।

122.अमावस्यत् अन्यतरस्याम् =अमा उपपदात् वसे :अधिकरणे ण्यत्। अमावास्या। (ऋ---हलो :,  च---जो : कुत्वम् =पाक्यम्)

123..छन्दसि निष्टर्क्य---देवहूय---प्रणीय---उन्नीय---उच्छिष्य---मर्यस्तर्या---ध्वर्य--खन्य---खान्य---देवयज्या---आपृच्छ्य---प्रतिषीव्य---ब्रह्मवाद्य---भाव्य--स्ताव्य---उपचाय्य--पृडानि =निष्टर्क्य---कृन्तते : निस्पूर्वात् क्यपि प्राप्ते ण्यत्। आदि---अन्तयो : विपर्यास : निस : षत्वं च। निष्टर्क्यं चिन्वीत पशु---काम :। स्पर्धन्ते वा उ देवहूये। मर्यस्तर्या। ध्वर्य। शुन्धध्वं देव्यायै कर्मणे देवयज्यायै। आपृच्छ्यं वाज्यर्षति। उपचाय्य---पृडम्।

123.हलो : ण्यत् =ऋ हलो : हल्---अन्तात् च धातो : ण्यत् स्यात्। कार्यम्। वर्ण्यम्।

125.ओ : आवश्यके =उवर्ण---अन्तात् धातो : ण्यत् स्यात् अवश्यम्---भावे द्योत्ये। लाव्यम्। पाव्यम्।

126.आसु---यु---वपि---रपि---लपि---त्रपि---चम :   च =षुञ् =आसाव्यम्। याव्यम्। यु मिश्रणे। वाप्यम्। राप्यम्। त्राप्यम्। लाप्यम्। चाम्यम्।

127.आनाय्य : अनित्ये =आङ् पूर्वात् नयते : ण्यत्। अय---आदेश : च निपात्यते। दक्षिण---अग्नि---विशेष : एव इदम्। स: (सा) गार्हपत्यात् आनीयत : अनित्य : च सततम् अप्रज्वलनात्। आनेय :

अन्य : घट---आदि :। वैश्य---कुल---आदे : च आनीत : च दक्षिण---अग्नि :।

128.प्रणाय्य : असंमतौ =प्रणाय्य : अन्तेवासी। विरक्त : इति अर्थ :। प्रणेय : अन्य :।

129.पाय्य---सान्नाय्य---निकाय्य---धाय्य मान---ह्वि---निवास---सामि---धेनीषु =मीयते अनेन इति पाय्यं मानम्। ण्यत् धातु---आदे : पत्वं च धातो : युक् इति युक्। सम्यक् नीयते होम---अर्थम् अग्निं प्रति इति सान्नाय्यं हविर्विशेष :।ण्यत् अय आदेश : च सम दीर्घ :च निपात्यते। निचीयते अस्मिन् धान्य---आदिकं निकय्य निवास :। अधिकरणे ण्यत् अय आदेश : धातु---आदे  कुत्वं च निपात्यते। धीयते अनया समित् इति धाय्या ऋक्।

130.क्रतौ कुण्डपाय्य---संचाय्यौ = कुण्डेन पीयते अस्मिन् सोम : कुण्डपाय्य : क्रतु :। संचीयते असौ  संचाय्य :।

131.अग्नौ परिचाय्य---उपचाय्य--समूह्या : =अग्नि---धारण--अर्थे स्थल---विशेषे एते साधव :। अन्यत्र तु परिचेयम्। उपचेयम्। संवाह्यम्।

132.चित्य---अग्निचित्ये च =चीयते असौ इति चित्य : अग्नि :। अग्ने : चयनम् अग्नि---चित्या।

133.ण्वुल्---तृचौ =धातो : एतौ स्त :। कर्ता, वोढा, कारिका।

134.नन्दि---ग्रहि---पच---आदिभ्य : लु---णिनि---अच : =नन्द---आदे : ल्यु :, ग्रहि---आदे : णिनि :, पच---आदे : अच्। नन्दन :, ग्राही, पच :।

135.इक्---उपधा---ज्ञा---प्री---किर : क : =एभ्य : क : स्यात्।क्षिप :, लिख :, बुध :, कुश :।: ज्ञ :। प्रीणयति इति प्रिय :। किरति इति किर :।    

136.आत : च उपसर्गे =सुग्ल :। प्रज्ञ :।

137.पा---घ्रा---ध्मा---धेट्---दृश : श : =पिबति इति पिब :। जिघ्र :। धम :। धय :। पश्यति इति

पश्य :।

138.अनुपसर्गात् लिम्प---विन्द---धारि---पारि---वेदि---उदेजि---चेति---साति---साहिभ्य : च =लिम्प :, विन्द :, धारय :, पारय :, वेदय :, चेतय ;, साइ सुख---अर्थ : =सातय :, साहय :। अनुपसर्गात् किम् ? प्रलिप :।

139.ददाति---दधत्यो : विभाषा =दद :, दध :। पक्षे वक्ष्यमाण : ण :। अनुपसर्गात् इति एव प्रद :,

प्रध :।

140.ज्वलति---कसन्तेभ्य : ण : =ज्वाल : पक्षे अच् ज्वल :। अनुपसर्गात् इति एव। प्रज्वल :।

141.श्या---व्द्य---धा---स्रु---संस्रवति---इण---वस---अवहृ---लिह्य---श्लिष---श्वस : च =श्यैङ् प्रभृतिभ्य : नित्यं ण : स्यात्। अवश्याय :। दाय :, धाय :, व्याध :, संस्राव :, अत्याय :, अवसाय :, अवहार :,

लेह :, श्लेष :, श्वास :।

142.दुन्य : अनुपसर्गे =दाव :, उपसर्गे प्रदव :।

143.विभाषा ग्रह : =ण : वा। पक्षे अच्। जलचरे---ग्राह :। ज्योतिषि ग्रह :।

144.गेहे क : =गृह :। धान्य---आदिकम् इति गृहम्। तात्स्थ्यात् गृहा : दारा :।

145.शिल्पिनि ष्वुन् =शिल्पक :। शिल्पकी(ङीष्)। क्रियासु कौशलं शिल्पं तत्कर्तरि ष्वुन्। 

146.ग : स्थकन् =गायते : स्थकन् स्यात् शिल्पिनि कर्तरि---गायक :।

147.ण्युट् च =गायन :। गायनी(ङीष्)।

148.ह : च व्रीहि---कालयो : =हाक : हाङ : च ण्युट् स्यात्। व्रीहौ काले च कर्तरि। जहाति उदकम् इति हायन : व्रीहि :। जहाति भावान् इति हायन : वर्षम्।

149.प्र---सृ--ल्व : समभिहारे वुन् =समभिहार---ग्रहणेन साधुकारित्वं लक्ष्यते। प्रवक :। सरक :।

लवक :।

150.आशिषि च =आशी : विषय---अर्थे वृत्ते : धातो : वुन् स्यात्कर्तरि। जीवतात् जीवक :। नन्दतात् नन्दक :।

प्रत्ययो---मुण्ड---विदां---दीप---जन--क्रियादिभ्य : अवद्य---पण्य---युग्यं---श्याव्द्यधा---दश। 618+150=768

 

                      ।इति तृतीय अध्यायस्य प्रथम : पाद : समाप्त :।

 

                                       तृतीय--- अध्याय : द्वितीय पाद :

 

 

1.कर्मणि अण् =कर्मणि उपपदे धातो : अण् प्रत्यय : स्यात्। उपपद : स्मास :। कुंभकार :  । आदित्यं पश्यति इति आदौ अनभिधानात् न।

2.ह्वा---वा--म : च =स्वर्ग---ह्वाय :। तन्तु---वाय :। धान्य---माय :।

3.आत : अनुपसर्गे क : =आत् अन्तात् धातो : अनुपसर्गात् कर्मणि उपपदे क : स्यात्। आत : लोप :।  गोद :। पार्ष्णित्रम्। अनुपसर्गे किम्  गो--सन्दाय :।

4.सुपि स्थ : =समस्थ :। विषमस्थ :।

5.तुन्द----शोकयो : पररिमृज----अपनुदो : =तुन्दं परिमार्ष्टि इति तुन्द---परिमृज :। शोकम् अपनुदति इति शोक---अपनुद :।:   

6.प्रे दा---ज्ञ : =दा रूपात् जानाते : च कर्मणि उपपदे क : स्यात्। सर्व---प्रद :। पथि---प्रज्ञ :। अनुपसर्गे इति उक्ते प्रादन्यस्मिन् सति न क :।

7.समि ख्य : =गो---संख्य :।

8.गा---पो : टक् =अनुपसृष्टाभ्यां आभ्यां टक् स्यात् कर्मनि उपपदे। सामग :। सामगी। नृप :। उपसर्गे तु साम---सङ्गाय :।

9.हरते : अनुद्यमने अच् =अंश---हर :। अनुद्यमने किम् ? भार---हार :।

10.वयसि च =उद्यमन---अर्थं सूत्रम्। कवच---हर :। क्---मार :।

11.आङि ताच्छील्ये =पुष्पाणि आहरति तच्छील : पुष्प---आहर :।

12.अर्ह : =अर्हते : अच् स्यात् कर्मणि उपपदे। पूजा---अर्ह : ब्राह्मण :।

13.स्तम्ब---कर्णयो : रमि---जपो : =स्तम्पे---रम : हस्ती। कर्णे--जप : सूचक :। तत्पुरुषे कृति इति हल्--अन्तात् डे : अलुक्।

14.शमि धातो : संज्ञायाम् =शंभव :। शंवह :।

15.अधिकरणे शेते : =खशय :।

16.चरे : ट : =कुरु---चर :। कुरु---चरी।

17.भिक्षा---सेना---दायेषु च =भिक्षा---चर :। सेनाअ---चर :। आदाय =ल्यप्---अन्तम्। आदाय---चर :।  (सह---चरी। पच---आदिषु चरट्।)

18.पुर :---अग्रत :---अग्रेषु सर्ते : =पुरस्सर :। अग्रतस्सर :। अग्र्सर :।

19.पूर्वे कर्तरि =कर्तृ---वाचिनि पूर्व शब्दे उपपदे सर्ते : ट : स्यात्। पूर्वं सरति इति पूर्व---सर :। कर्तरि कम् ? पूर्व---देशं सरति इत् पूर्व---सर :। पूर्वदॆशं सरति इति पूर्व---सार :।

20.कृञ : हेतु---ताच्छील्य---अनुलोम्येषु =एषु द्योत्येषु करोते : ट : स्यात्। अत : कृ---कमि इति स :।  यशस्करी विद्या। श्राद्धकर :। वचनकर :।

21.दिवा---विभा--निशा---प्रभा---भास्कर---अन्त---अन्तादि---बहुनान्दी---कि---लिपि--लिबि---बलि---भक्ति---कर्तृ---चित्र---क्षेत्र---संख्या---जंघा---बाह्य---हर्यत्---तद्धन :अरुष्षु =एषु करोते : ट : स्यात्। अहेत्वादौ अपि। लिपि लिबि शब्दौ पर्यायौ। दिवाकर :।

22.कर्मणि भृतौ =कर्मकर : भृतक :।

23.न शब्द---श्लोक---कलह---गाथा---वैर---चाटु---सूत्र---मन्त्र---पदेषु =एषु कृञ : ट : न। शब्दकार :। श्लोककार :। etc.

24.तम्ब---शकृतो : इन् =व्रीहि---वत्सयो इति वक्तव्यम्। वक्तव्यम् =वररुचे : वाक्यान्। स्तम्बकरि : =व्रीहि :। शकृत्करि : वत्स :।

25.हरते : दृति---नाथयो : पशौ =दृति---नाथयो : उपपदयो : हृञ : इन् स्यात्। दृतिं हरति इति

दृतिहरि :। नाथं नासा---रज्जुं हरति इति नाथहरि । 

26.फलेग्रहि---आत्मंभरि : च =फलानि गृण्हाति =फलेग्रहि :। अत्मानं बिभर्ति इति आत्मंभरि :। चात् कुक्षिंभरि :। ज्योत्स्ना---करंभम् उदरंभरय : चकोरा :-----मुरारि :।

27.छन्दसि वन---सन---रक्षि---मथाम् =एभ्य : कर्मणि उपपदे इन् स्यात्। ब्रह्म---वनिं त्वा क्षत्रवनिम्। उत नो गोषणिं धियम्। ये पथां पथि---रक्षय :। चतरक्षौ पथि---रक्षी हति : मतीनाम् अभि।

28.एजे : खश् =ण्यन्तात् एजे : खश् स्यात्। जनम् एजयति इति जनमेजय :।

29.नासिका---स्तनयो : ध्मा---धेटो : =नासिकंधम :। स्तनंधय :।

30.नाडी---मुष्टयो : च =नाडिंधय :। नाडिंधम : । मुष्टिंधय :। मुष्टिंधम :।

31.उदि कूले रुजि---वहो : =उत्पूर्वाभ्यां रुजि---वहाभ्यां ऊले कर्मणि उपपदे खश् स्यात्। कूलमुद्रज :। कूलमुद्वह :।

32.वह---अभ्रे लिह : =वह : स्कन्ध :। वहंलिह : गौ :। अभ्रंलिह : =वायु :। अभ्रंलिहाग्रा : ---मेघदूतम्।

33.परिमाणे पच : =प्रस्थंपच : स्थाली। खारिंपच : कटाह ।

34.मित---नखे च =मितंपचा ब्राह्मणी नखंपचा यवागू :। पचि : अत्र ताप---वाची।

35.विधु---अरुषॊ तुद : =विधुन्तुद :। अरुन्तुद :।

36.असूर्य---ललाटयो :दृशि---तपो : =सूर्यं न पश्यन्ति इति असूर्यंपश्या : राज---दारा :। ललाटंतप :(तपति) तिग्मांशु : --- उत्तररामचरिते भवभूति :।

37.उग्रंपश्य---इरंमद---पाणिंधमा : च =उग्रंपश्य :। इरंमद : =मेघ---ज्योति :। पाणिंधमा =अध्वा अन्धका---आवृता।

38.प्रिय---वशे वद : खच् =प्रियंवद :। वशंवद :।

39.द्विषत्---परयो : तापे =द्विषन्तप :। परन्तप :।

40.वाचि यम : व्रते =वाचंयम : मौन---व्रती। व्रते किम् ? अशक्ति---आदिना वाचं यच्छति इति

वाग्याम :।

41.पू :---सर्वयो : दारि---सहो : =पुरंदर :। सर्वंसह :।

42.सर्व---कूल---अभ्र---करीषेषु कष : =सर्वंकष : =खल :। कूलंकषा नदी। अभ्रंकष : वायु :। करीषंकषा वात्या(व्रात्या)।

43.मेघ---ऋति---भयेषु कृञ : =मेभंकर :।ऋतिंकर :। भयंकर :। अभयंकर :।

44.क्षेम---प्रिय---मद्रे अण् च =क्षेमंकर :। क्षेमकार :। प्रियंकर :। प्रियकार :। मद्रंकर :। मद्रकार :।

45.अशिते भुव :  करण---भावयो : =अशित : भवति अनेन अशितंभव : ओदन :। अशितस्य भवनं अशितंभव :।

46.संज्ञायां भृ---तृ---वृ---जि---धारि--सहि---तपि---तम : =विश्वं बिभर्ति इति विश्वंभरा। रथन्तरं नाम साम। पतिंवरा =कन्या। शत्रुंजय : हस्ती। युगन्धर : पर्वत :। शत्रुंसह :। शत्रुंतप :। शत्रुंतम :।

47.गम : च =सुतंगम :।

48.अन्त---अत्यन्त---अध्व---दूर---पार---सर्व---अनन्तेषु ड : =सज्ञायाम् इति निवृत्तम्। अन्तग :। अत्यन्तग :। अध्वग :। दूरग :। पारग :। सर्वग :। अनन्तग :।

49.आशिषि हन : =शत्रुं वध्यात् शत्रुह :।

50.अपे क्लेश---तमसो : =क्लेशापह : पुत्र :। तमोऽपह : सूर्य :।(सुताभिधानं स ज्योति : सद्य : शोकतमोऽपहम्--रघुवंशम्।)

51.कुमार---शीर्षयो : णिनि : =कुमार---घाती। शीर्ष---घाती।

52.लक्षणे जाया---पत्यो : टक् =हन्ते : टक् स्यात् लक्षणवति कर्तरि। जाया---मारण---सूचकं पाणि---रेखा---विशेष--आदिकं यस्य अस्ति स तां हन्ति इति जायाघ्न :। पतिघ्नी स्त्री।

53.अमनुष्य---कर्तृके च =जायाघ्न : तिल---कालक :। पतिघ्नी पाणि---रेख। पित्तघ्नं घृतम्। अमनुष्य इति किम् ? आखु---घात : शूद्र :।

54.शक्तौ हस्ति---कपाटयो : =हन्ते : टक् स्यात् शक्तौ द्योत्यायाम्। मनुष्य---कर्तृक---अर्थम् इदम्। हस्तिघ्न : ना। कपाटघ्न : चोर :।

55.पाणिघ---ताडघौ शिल्पिनि =हन्ते : टक् टि लोप :घत्वं च निपात्यते। पाणि---ताडयो : उपपदयो :। शिल्पिनि किम् ? पाणि--घात :।  

56.आढ्य---सुभग---स्थूल---पलित---नग्न---अन्ध---प्रियेषु च्वि अर्थेशु अच्वौ कृञ : करणे ख्युन् =अनाढ्यम् आढ्यं कुर्वन्ति अनेन आढ्यंकरणम्। अच्वौ किम् ? आढ्यीकुर्वन्ति।

57.कर्तरि भुव : खिष्णुच्---खुकञौ =आढ्यंभविष्णु :। आढ्यंभावुक :।

58.स्पृशे अनुदके क्विन् =घृतस्पृक्। कर्मणि इति निवृत्तम्। मन्त्रेण स्पृशति इति मन्त्रस्पृक्।

59.ऋत्विक्---दधृक्---स्रक्--उष्णिक्---अञ्चु---युजि---क्रुञ्चां च = व्याख्यातम्।

60.त्य्द---आदिषु दृश : अनालोचने कं च =सदृक्, सदृश :। अन्यादृक्, अन्यादृश :।

61.सत्---सू---द्विष---द्रुह---दुह---युज---विद---बिद---छिद---जि---न्_---राजाम् उपसर्गे क्विप् =एभ्य : क्विप् स्यात् उपसर्गे सति असति च सुपि उपपदे। द्युसत्। निषत्। उपनिषत् अण्डसू :। प्रसू :। मित्र---दिट्। प्रद्विट्। मित्र---ध्रुक्। प्रध्रुक्। गो---धुक्। प्रधुक्। अश्व---युक्। विद वित्। निवित्। इति आदि । अश्व, ग्रामाभ्यां नयते : णौ वाच्य : इति वाक्यकार :।

62.भज : ण्वि : =अंश---भाक्। प्रभाक्।

63.छन्दसि सह : =पृतनाषाट्। तुराषट्।

64.वह : च =दित्यवाट्।(चमकम्)

65.कव्य---पुरीष---पुरीष्येषु ञयुट् =कव्य---वाहन :।

66.हव्य् अनन्त : पादम् =हव्य---वाहन :। पाद---मध्ये तु ण्वि :। हवयवालग्नि : अजर : पिता न :। (डलयो ; अभेद :।)

67.जन---सन---खन---क्रम---गम : विट् =विट्---वनो : इति आत्वम्। अब्जा। गोजा। गोषा इन्द्रो नृषा असि। स्नोते अन इति षत्वम्। इयं शुष्मेभि : विसखा  इवारुजत्। आ दधिका : शवसा पञ्चकृष्टी :।

अग्रेगा :।

68.अद : अनन्ने =आममत्ति : आमात्। सस्यात्। अन्ने किम् ? अन्नाद :।

69.क्रव्ये च =क्रव्यात्। आम---मांस---भक्षक :। कथं तर्हि क्रव्याद  अस्रप आशर इति। पक्व---मांस---आदे : उपपदे अण्।

70.दुह : कप् घ :च =काम--दुघा।

71.मन्त्रे श्वेतवह---उक्थशशस्---पुरोडाश : ण्विन् =श्वेतवा :। श्वेतवहादीनां ड : पदस्य इति वक्तव्यम्। यत्र पदत्वं भावि तत्र ण्विन : अपवाद : ड : वक्तव्य इति अर्थ । उक्थश =यजमान : =उक्थै : or उक्थानि शंसति उक्थशा :। उक्तशासौ उक्थशास :। पुर : दास्यते पुरोडा :(पुरोडाश :)।

72.अवे यज्ञ : =अवया : अवयाजौ अवयाज :।

73.विजुपे छन्दसि =उपे उपपदेयजे : विच् =उपयट्।

74.आत : मनिन्---क्वनिप्---वनिप : च =सुपि उपसर्गे च उपपदे आत् अन्तेभ्य : धातुभ्य : छन्दसि विषये मनिप् आदय : प्रत्यया : स्यु :। चात् विच्। सु---दामा। सु---धीवा।

75.अन्येभ्य : अपि दृश्यन्ते =मनिन्, क्वनिप्, वनिप् and विच् =एते प्रत्यया : धातो : स्यु :।

76.क्विप् च =अयम् अपि ड्र्श्यते। उखा---स्रत्। पर्ण---ध्वत्। वाह---भ्रट्।

77.स्थ : क च =चात् क्विप्। शंस्थ :। शंस्था :।

78.सुपि अजातौ णिनि : ताच्छील्ये =अजाति---अर्थे सुपि धातो : णिनि : स्यात्। ताच्छील्ये द्योत्ये उष्ण---भोजी। शीत---भोजी। अजातौ किम् ? ब्राह्मणानाम् आमन्त्रयिता। ताच्चील्ये किम् ? उष्णं भुङ्क्ते कदाचित्।

79..कर्तरि उपमाने =उष्ट्र इव क्रोशति उष्ट्र---क्रोशी। कर्तरि किम् ? अपूपान् इव भक्षयति माषान्। उप्माने किम् ? उष्ट्र : क्रोशति।

80.व्रते =स्थण्डिल---शायी।

81.बहुलम् आबीक्ष्ण्ये =पौन : पुन्ये च द्योत्ये सुपि उपपदे णिनि : । क्षीर-पायिण : उशीनरा :।

82.मन : =दर्शनीय---मानी।

83.आत्ममाने खश् च =स्वकर्मके मनने वर्तमानात् सुपि खस् स्यात्। चात् णिनि :। पण्डितं आत्मानं मन्यते =पण्डितंमन्य :। पण्डितमानी।

84.भूते अधिकार : अयम् रर्तमाने लट् इति यावत्।

85.करणे य ज : =करणे उपपदे भूत---अर्थ---यजे : णिनि : स्यात्---कर्तरि। सोयाजी।         

86.कर्मणि हन : =पितृव्य---घाती।

87.ब्रह्म---भ्रूण---वृत्रेषु क्विप् =ब्रह्महा। भ्रूणहा। वृत्रहा।

88.बहुलं छन्दसि =यो मातृहा, पितृहा।

89.सुकर्म---पाप--मन्त्र---पुण्येषु कृञ : =सुकृत्। पापकृत्। मन्त्र्कृत्। पुण्यकृत्।

90.सोमे सुञ : =सोमसुत्।

91.अग्नौ च् : = अग्निचित्।

92.कर्मणि अग्नि---आख्यायाम् =श्येनचित्।

93.कर्मणि इनि विक्रिय : =सोम---विक्रयी घृत---विक्रयी। कुत्सित---ग्रहणम् कर्तव्यम् =वररुचि :\

94.दृशे : क्वनिप् =पारं दृष्टवान् =पार---दृश्वा। (श्रुति---पार---दृश्वा =रघुवंशम्)

95.राजनि युधि कृञ : =राज---युध्वा। राज---कृत्वा।

96.सहे च =सहयुध्वा। सह---कृत्वा।

97.सप्तम्यां जने : ड : =सरसिजम्। मन्दुरायां जात : मन्दुरज :।

98.पञ्चम्याम् अजातौ =जाति---शब्द---वर्जिते पञ्चमी---अन्ते उपपदे जने : ड : स्यात्। संस्कारज :।

99.उपसर्गे च संज्ञायाम् =प्रजा सन्ततौ जने ।

100.अनौ कर्मणि = अनु---पूर्वात् कर्मणि उपपदे जने : ड : स्यात्। पुमांसम अनुरुध्य जाता पुमनुजा।

101.अन्येषु अपि दृश्यते =अज :। द्विज :। परित : खाता परिखा।

102.निष्ठा =भूत---अर्थ---वृत्ते : धातो : निष्ठा स्यात्। 

103.सु---यजो : ङ्वनिप् =सुत्वा। यज्वा।

104.जीर्यते : अत्रुन् = जरन्। If it is निष्ठा =जीर्ण :। जीर्णवान्।

105..छन्दसि लिट् =भूत---सामान्ये। अहं द्यावा---पृथिवी आततान।

106.लिट : कानच् वा & 107.कसु : च =Here कानच् and क्वसु : have to be applied only in the case of Vedas. Such is the opinion of पाणिनि : and वररुचि :। But  the poets are the followers of  बहुलं rule.  ददिवान्, जक्षिवान् and बभूवान्। are examples for the 106th सूत्र. तस्थिवांसम् is the example for107thसूत्र।

108.भाषायां सद---वस---श्रुव : =सत्---आदिभ्य : भूत---सामान्ये लिट् वा स्यात्। तस्य नित्यं क्वसु :। निषेदुषीम् आसन---बन्ध---धीर :। अद्यूयुष : ताम् अभवन् जनस्य। शुश्रुवान्।

109.उपेयिवान्---अनाश्वान्---अनूचान : च =उप पूर्वात् इण : भाषायाम् अपि भूत---मात्रे लिट् वा स्यात्। तस्य नित्यं क्वसु :।

110.लुङ् =भूत---अर्थ---वृत्ते : धातो : लुङ् स्यात्।

111.अनद्यतने लङ् =अनद्यतन्---भूत---अर्थ---वृत्ते : धातो : स्यात्।

112.अभिज्ञा---वचने लृट्(lrut) =स्मृति---बोधिनि उपपदे भूत---अनद्यतने---धातो : लृट्(lrut) स्यात्। स्मरसि कृष्ण गोकुले वत्स्याम :।

113.न यदि =यत् योग्र् लृत्(lrut) न। अभिजानासि कृष्ण यत् वने अभुञ्ज्महि।

114.विभाषा साकाङ्क्षे =उक्त विषये लृट्(lrut) वा स्यात् ल्क्ष्य---लक्षण भावेन साकाङ्क्ष : चेत् धातु---अर्थ :। स्मरसि कृष्ण वने वत्स्याम :, तत्र गा : चारयिष्याम :।

115.परोक्षे लिट् =उत्तम---पुरुष---चित्त---विक्षेप---आदिना पारोक्ष्यम्। सुप्त : अहं :  विललाप। बहु जगाद पुरस्तात् तस्य मत्ता  किल अहम्।

116.ह---शश्वतो : लङ् च =अनयो : उपपदयो : लिट् विषये लङ् स्यात् चात् लिट्। इति ह अकरोत्। or इति ह चकार। शश्वत् अकरोत्। शश्वत् चकार।

117.प्रश्ने च आसन्न---काले =प्रष्टव्य : प्रश्न :। आसन्न---काले पृच्छ्यमाने अर्थे लिट् विषये लङ्---लिटौ स्त :। अगच्छत् किम् ?

118.लट् स्मे =लट् with स्म becames लङ्। यजति स्म युधिष्ठिर् :।

119.अप्रोक्षे च =भूत---अनद्यतने लट् स्यात् स्म योगे। एवं स्म पिता ब्रवीति।

120.ननौ पृष्ट---प्रतिवचने =भूते लट् स्यात्। अकार्षी : किम् ? ननु करोमि भो :।

121.नुवो : (नन्वो :) विभाषा। अकार्षी : किम् ? न करोमि। न अकार्षम्। अहं नु करोमि। अहं नु अकार्शम्।

122.पुरि/पुरौ लुङ् च स्मे =अनद्यतन---ग्रहणम् मण्डूक---प्लुत्या अनुवर्तते। पुरा शब्द---योगे भूत---अनद्यतन्ने विभाषा लुङ् चात् नट् नतु स्म योगे। पक्षे यथा---प्राप्तम्। वसन्ति इह छात्रा : ,

अवोत्सु : ,अवसन् , ऊषु : वा। अस्मे किम् ? यजति स्म पुरा। भविष्यति अनुवर्तमाने।

123.वर्तमाने लट् =वर्तमान---क्रिया---वृत्ते : धातो : लट् स्यात्। अटौ इतौ।

124.लट : शतृ---शानचौ अप्रथमा---समानाधिकरणे =अप्रथमा---अन्तेन समानाधिकरणे सति लट : शतृ शानच्।

125.संबोधने च =हे पचन्। हे पचमान।

126.लक्षण---हेत्वो : क्रियाया : =क्रियाया : परिपाचके हेतौ च अर्थे वर्तमानात् धातो : लट : शतृ---शानचौ स्त :। शयना : भुञ्जते यवना :। अर्जयन् वसति। हरिं पश्यन् मुच्यते। हेतु : फलं कारणम् च।

127.तौ सत् =तौ शतृ--शानचौ सत्---संज्ञौ स्त :। 

128.पूङ्---यजो : शानन् =पवमान् :। यजमान :। (आने मुक्)

129.ताच्छील्य---वयो---वचन---शक्तिषु चानश् =एषु द्योत्येषु कर्तरि चानश्। भोगं भुञ्जान :। कवचं बिभ्राण :। शत्रून् निघ्नान :।

130.इङ् धार्यो : शतृ---अकृच्छ्रिणि =आभ्यां शतृ स्यात् अकृच्छ्रिणि कर्तरि। अधीयन्। धारयन्। अकृच्छ्रिणि किम् ? कृच्छ्रेण अधीते। लृच्छ्रेण् धारयति।:

131.द्विष : अमित्रे =द्विषन् शत्रु :।

132.सुयञ : यज्ञ---संयोगे =सर्वे सुन्वन्त :। सर्वे यजमाना : सत्रिण :।

133.अर्ह : प्रशंसायाम् =अर्हन्।

134.आक्वे : तच्छील---तद्धर्म---तत्---साधुकारिषु =क्विपम् अभिव्याप्य वक्ष्यमाणा : प्रत्यया : तच्छील---तद्दर्म---तत्---सधुकारिषु कर्तृषु बोध्या :।

135.तृन् =कर्ता कटान्।

136.अलंकृञ्---निराकृञ्---प्रजन---उत्पच---उत्पत---उन्मद---रुचि---अपत्रप---वृतु---वृधु---सह---चर इष्णुच् =अलंकरिष्णु :। निराकरिष्णु :। प्रजनिष्णु :। उत्पचिष्णु :। उत्पतिष्णु :। उन्मदिष्नु :। रोचिष्णु :। अपत्रपिष्णु :। वर्तिष्णु :। वर्धिष्णु :। सहिष्णु :। चरिष्णु :।

137.णे :छन्दसि =वीरुध : पारयिष्णव :।:

138.भुव : च =भविष्णु :। (छन्दसि इति एव)

139.ग्ला---जि---स्थ : च ग्स्नु : =छन्दसि इति निवृत्तम्। गित् इयं नतु कित्। (तेन स्थ ईत्व or आत्व?) ग्लानु :। गित्वात् न गुण :। जिष्णु :। स्थास्नु :।

140.त्रसि---गृधि---धृषि---क्षिपे : कु : =त्रस्नु :। गृध्नु :। धृष्णु :। क्षिप्नु :।

141.शम् इति अष्टाभ्य : घिनुण् =शमी। तमी। दमी। श्रमी। भ्रमी। क्षणी। क्षमी। इति आदि।

142.संपृच---अनुरुधाङ्---यमाङ्---यस---परिसृ---संसृज---परिदेवि---संज्वर---परिक्षिप---परिरट---परिवद---परिदह---परिमुह---दुष---द्विष---द्रुह---युज---आक्रीड---विविच---त्यज---रज---भज---अतिचर---अपचर---आमुष---अभ्याहन : च =संपर्की। अनुरोधी। आयामी। आयासी। परिसारी। संसर्गी। परिदेवी। संज्वारी। परिक्षेपी। परिराटी\ परिवादी। परिदाही। परिमोही। दोषी। द्वेषी। द्रोही। आक्रीडी। विवेकी। त्यागी रागी। भागी। अतिचारी। अपचारी। आमोषि। अभ्याघाती।

143.वौ कष---लस---कत्थ---स्रम्भ : =विकाषी। विलासी। विकत्थी। विस्रंभी।।

144.अपे च लष : =चात् वौ। अपलाषी। विकाषी।

145.प्रे लप---स्रु---द्रु---मथ---वद---वस : =प्रलापी। प्रसारी। प्रद्रावी। प्रमाथी। प्रवादी। प्रवासी।

146.निन्द---हिंस---क्लिश---खाद---विनाश--परिक्षिप---परिरट---परिवाद---व्याभाष्य---असूय : वुञ्

=एभ्य : वुञ् स्यात्। निन्दक :, हिंसक : इति आदि।

147.देवि---क्रुशो : च उपसर्गे =आदेवक :। आक्रोशक :। उपसर्गे किम् ? देवयिता। क्रोष्टा।

148.चलन---शब्द---अर्थात् अकर्मकात् युच् =चलन :। शब्दन :। रवण :। अकर्मकात् किम् ? पठिता विद्याम्।

149.अनुदात्त---इत : च हल्---आदे : =अकर्मकात् युच् स्यात्। वर्तन :। वर्धन :। अनुदात्त---इत :

किम् ?

150. जु---चङ्क्रम्य---दन्द्रम्य---सृ---गृधि---ज्वल---शुच---लष---पत---पद : =जु इति सौत्र : धातु : गवौ वेगे च। जवन :। चङ्क्रमण :। दन्द्रमण :।भासुर :।

151.क्रुध---मण्ड---अर्थेभ्य : च =क्रोधन :। रोषण :। मण्डन :। भूषण :।

152.न य : =यकार---अन्तात् युच् न स्यात्। क्नूयिता। क्ष्मायिता।

153.सूद---दीप---दीक्ष : च =सूदिता। दीपिता। दीक्षिता। कथं तर्हि मधु---सूदन :। नन्दी---आदि :।

154.लष---पत---पद---स्था---भू---वृष---हन---कम---गम---शॄभ्य : च उकञ् =लाषुक। पातुक। पादुक। इति आदि।

155.जल्प---भिक्ष---कुट्ट---लुण्ट---वृङ : षाकन् =जल्पाक :। बिक्षाक :। कुट्टाक :। लुण्टाक :।

वराक :। वराकी(ङीष्)

156.प्रजे : इनि : =प्रजवी।

157.जि---दृ---क्षि---विश्रि(विश्री ?)इण्-----वम---अव्यथ---अभ्यम---परिभू---प्रसूभ्य : च =जवी। दरी। क्षयी। विश्रयी। अत्ययी। वमी।अव्यथी। अभ्यमी। परिभवी। प्रसवी।

158.स्पृहि---गृहि---पति---दयि---निद्रा---तन्द्रा---श्रद्धाभ्य : आलुच् =स्पृहयालु । गृहयालु। पतयालु। दयालु। निद्रालु। तन्द्रालु। श्रद्धालु।

159.दा---धेट्---सि---शद---सद : रु : =दारु :। धारु :। सेरु :। शद्रु :। सद्रु :।

160.सृ---घस्---अद : क्मरच् =सृमर :। घस्मर :। अद्मर :।

161.भञ्ज---भास---मिद : घुरच् =भङ्गुर :। भासुर :। मेदुर :।

162.विदि---भिदि---छिदे : कुरच् =विदुर :। भिदुरम्। छिदुरम्। 

163.इण्---नश---जि---सर्तिभ्य : च क्वरप् =इत्वर : इत्वरी(ङीप्)। नश्वर :। जित्वर :। सृत्वर :।

164.गत्वर : च =गमे : अनुनासिक---लोप : निपात्यते। गत्वरी।(ङीप्)

165.जागु : ऊक : =जागर्ते : ऊक : स्यात् =जागरूक :।

166.यज---जप---दशां यङ  =एभ्य : यङ्---अन्ते ऊक : स्यात्। यायजूक :। जञ्जपूक :। दन्दशूक :। :

167.नमि---कम्पि---स्मर---जस---कम---हिंस---दीप : र : =नम्र :। कम्प्र :। (स्मर :)स्मेर :। जसि नञ् पूर्व : क्रिया---सातत्ये वर्तते।अजस्रम् =सन्ततम्।    

168.सन्---आशस---सभिक्ष उ : =आशंसु :। भिक्षु :।(चिकीर्षु :)

169.विन्दु : इच्छु : =वेत्ते : नुम्, इषे : छत्वम् च निपात्यते। विन्दु :। इच्छु :(इषु---गमि---यमां छ :)

170.क्याच्छन्दसि =देवान् जिगाति सुम्नयु ::|

171.आत्---ऋ---गम---हन---जन : कि---किनौ लिट् च =आत् अन्तात् ऋत् अन्तात् गम---आदिभ्य : च कि---किनौ स्त :। छन्दसि तौ लिट्वतीलिड्वत्)। पपि : सोमं दहिर्गा :। बभ्रिर्वज्रम्। जग्मिर् युवा। जघ्नि : वृत्रम् अमित्रियम्। जज्ञि :।

172.स्वपि---तृषो : जनिङ् =स्वप्नक्। तृष्णक्।

173.शॄ---वन्द्यो : आरु : =शरारु :। वन्दारु :।

174.भिय : क्रु---कुकनौ =भीरु :। भीरुक :।

175.स्था---ईश---भास---पिस---कस : वरच् =स्थावर :। ईश्वर :। भास्वर :। पेस्वर :(?)। कस्वर :।

176.य : च यङ : =याते : यङ्---अन्तात् वरच् स्यात्। यायावर :।

177.भ्राज---भास---धु---विद्युत---ऊर्जि---पॄ---जु---ग्रावस्तुव : क्विप् =भ्राट्। भा :। धू :। विद्युत्। ऊर्क्।

पू :। जू :। ग्रावस्तुत्।

178.अन्येभ्य : अपि दृश्यते =छित्, भिद् etc.

179.भुव : संज्ञा---अन्तरयो : =मित्रभू : नाम कश्चित्। धनिक---अधमर्णयो :(अधम---ऋणयो :) य : तिष्ठति विश्वास---अर्थं स प्रतिभू :।

180.वि---प्र---संभ्य : डु असंज्ञायाम् =एभ्य : डु स्यात् न तु संज्ञायाम् =विभु : =व्यापक :। प्रभु  =: स्वामी। संभु : जनिता। संज्ञायाम् =विभु : नाम कश्चित्।

181.ध : कर्मणि ष्ट्रन् =धात्री =जननी, अलकी, वसुमती, उपमाता।

182.दाम्---नी---शस---यु---युज---स्तु---तुद---सि---सिच---मिह---पत---दश---नह : करणे =दात्रम्। नेत्रम्।

शास्त्रम्।योत्रम्।योक्त्रम्। स्तोत्रम्। तोत्रम्। सेत्रम्। सेक्त्रम्। मेढ्रम्। पत्रम्। दंष्ट्रम्। नद्ध्री।

183.हलसूकरयो : पुव : =हलस्य सूकरस्य इति पोत्रं मुखम् इति अर्थ :।

184.अर्ति---लू---धू---सू---खन---सह---चर इत्र : =अरित्रम्। लवित्रम्। धुवित्रम्। सवित्रम्। खनित्रम्। चरित्रम्।

185.कर्तरि च ऋषि---देवतयो : =पुव: इत्र स्यात्। ऋषौ करणे देवतायां कर्तरि। ऋषि : वेदमन्त्र :। तत्---उक्तं ऋषिणा इति दर्शनात्। पूयते अनेन इति पवित्रम्। देवतायां त्वग्नि : स मा पुनातु।

186.ञीत : क्त :=क्ष्विण्ण :। इद्ध :।

187.मति---बुद्धि---पूजा---अर्थेभ्य : च =मति : इह इच्छा। बुद्धे पृथक् उपादानात्। राज्ञां मत : =इष्ट :।

बुद्ध : पूजित :, विदित :।

कर्मणि---दिवा---पू:---सत्---बहुलम्---अन्येष्वपि---नन्वो : ---शमिति---भञ्जभास---ध : कर्मणि अष्टौ।

Pro. Total =768 + 187 =955.
                                           । इति तृतीय---अध्यायस्य द्वितीय : पाद : समाप्त :।
 

 

 

                                         तृतीय---अध्याय : तृतीय---पाद :

 

1.उण---आदय  बहुलम् =एते वर्तमाने संज्ञायां च बहुलं स्यु :। केचित् अविहिता : अपि ऊह्या :। संज्ञासु धातुरूपा : अपि प्रत्यया : च तत : परे। कर्यात् विद्यात् अनुबन्धम् एतत् शास्त्रम् उणआदिषु। केचित् उण---पाठं पाणिने---महर्षे : अव्युत्पन्नम् इति वदन्ति। इदं विषयं महाभाष्ये विस्तरेण सह व्याख्यातम्।

2.भूते अपि दृश्यन्ते and 3.भविष्यति गम्य---आदय : =उण---आदय : are seen both in past and future tenses.

4.यावत्---पुरा निपातयो : लट् =निपातौ एतौ निश्चयं द्योतयत :। यावत् भुङ्क्ते। पुरा भुङ्क्ते।

5.विभाषा कदा---कर्ह्यो : =कदा कर्हि वा भुंङ्क्ते भॊक्ष्यते वा भोक्ता वा।  

6.किंवृत्ते लिप्सायाम् =कं कतरं कतमं वा भोजयसि, भोजयिष्यसि, भोजयिता असि वा। (भविष्यति लट् वा स्यात्।

7.लिपमान---सिद्धौ च =य :अन्नं ददाति, दास्यति,  दाता वा, स: स्वर्गं याति, यास्यति, याता वा।   

8.लोट् अर्थ---लक्षणे चं  =लोट् ---अर्थ : प्रैषादि : लक्ष्यते येन तस्मिन् अर्थे वर्तमानात् धातो : भविष्यति लट् वा स्यात्। कृष्ण चेत् भुङ्क्ते, त्वं गा : चारय।

9.लिट् च ऊर्ध्व---मौहूर्तिके =मुहूर्तात् उपरि उपाध्याय : चेत् आगच्छेत्, आगच्छति, आगमिष्यति वा आगन्ता वा, त्वं छन्द : अधीष्व।

10.तुमुन्---ण्वुलौ क्रियायां क्रिया---अर्थायाम् =क्रिया---अर्थायाम् क्रियायाम्---उपपदे भविष्यति अर्थे धातो : एतौ स्त :। कृष्णं द्रष्टुं याति, कृष्णं दर्शक : याति।

11.भाव---वचना : च =भाव---अधिकृत्य वक्ष्यमाण घञ्---आदय : क्रियायां क्रिया---अर्थायां भविष्यति स्यु :। यागाय याति।

12.अण् कर्मणि च =कर्मणि उपपदे क्रियायां क्रिया---अर्थायां च अण् स्यात्। काण्डलाव : व्रजति।

13.लृट्(lrut) शेषे च =भविष्यत् अर्थात् धातो : लृट् (lrut) स्यात् क्रियायां क्रिया---अर्थायां असत्यां सत्यां च।

14.लृट :(lrut) सत्--- वा =व्यवस्थित---विभाषा इयम्। तेन अप्रथम—-समनाधिकरणे प्रत्यय---

उत्तरपदयो : लक्षण---हेत्वो : च संबोधने नित्यम्।

15.अनद्यतने लुट् =भविष्यति अनद्यतने अर्थे धातो : लुट् स्यात्।

16.पद---रुज---विश---स्पृश : घञ् =पाद :। रोग :। वेश :। स्पर्श :। भविष्यति इति निवृत्तम्।

17.सृ स्थिरे =सार :।

18.भावे =पाक :।

19.अकर्तरि च कारके संज्ञायाम् =कर्तृ---भिन्ने कारके घञ् स्यात्। राग :।

20.परिमाण---अख्यायां सर्वेभ्य : =एक---कुण्डल---निचाय :। द्वौ शूर्प---निष्पावौ। द्वौ कारौ।

21.इङ : च =उपेत्य अस्मात् अधीते =उपाध्याय :।

22.उपसर्गे रुव : =संराव :। उपसर्गे किम् ? रव :।

23.समि यु---द्रु---दुव : =संयाव :। संद्राव :। संदाव :।

24.श्रि---णी---भुव : अनुपसर्गे =श्राय :। नाय :। भाव :। अनुपसर्गे किम् ? प्रश्रय :। प्रणय :। प्रभव :।

25.वौ क्षु---श्रुव : =विक्षाव :। विश्राव :। वौ किम् ? क्षव :। श्रव :।

26.अव---उदो : निय : =अवनाय : =अध : नयनम्।

27.प्रे द्रु---स्तु---स्रुव : =प्रद्राव :। प्रस्ताव :। प्रस्राव :। प्र इति किम् ? द्रव:। स्तव :। स्रव :।

28.नि: अभ्यो : पूल्वो : =निष्पाव : =धान्य---विशेष :। अभिलाव :। नि:---अभ्य : किम् ? पव :। लव :।

29.उत्---न्यो : ग्र : =उद्गार :। निगार :। उत्---न्यो : किम् ? गर :

30.कॄ धान्ये =उत्कार :। निकार :। धान्ये किम् ? भिक्षा---उत्कर :।

31.यज्ञे समि स्तुव : =समेत्य स्तुवन्ति यस्मिन् देशे छन्दोगा : स : देश : =संस्ताव :। यज्ञे किम् ? संस्तव : =परिचय :।

32.प्रे स्त्रो : अयज्ञे =प्रस्तार :। अयज्ञे किम् ? बर्हिष : प्रस्तर : =मुष्टि---विशेष :।

33.प्रथने वौ अशब्दे =वि पूर्वात् स्तृणाते : घञ् स्यात् अशब्द---विषय---प्रथने पटस्य विस्तार :। प्रथ्ने किम् ? तृण---विस्तर :। अशब्दे किम् ? ग्रन्थ---विस्तर :।

34.छन्द : नाम्नि च =विष्टार---पङ्क्ति : छन्द :। विस्तीर्यन्ते अस्मिन् अक्षराणि इति अधिकरणे घञ्। तर : =कर्मधारय :।

35.उदि ग्रह : =उद्ग्राह :।

36.समि मुष्टौ =संग्राह :। मुष्टौ किम् ? द्रव्यस्य संग्रह :।

37.परि---न्यो : नी---इणो : द्यूत---अभ्रेषयो : =परि पूर्वात् नयते : नि पूर्वात् इण : च घञ् स्यात् क्रमेण द्यूते अभ्रेषे च विषये।परीणायेन (शारान् ?) हन्ति। एष अत्र न्याय :। परिणय : = विवाह :। न्यय  =: नाश:।

38.परौ अनुपात्यय इण : =क्रम---प्राप्तस्य अनतिपात : अनुपात्यय :। कालस्य पर्यय : =अतिपात :।

39.वि---उपयो : शेते : पर्याये =तव विशाय :। राज---उपशाय :। पर्याये किम् ? विशय : =संशय :। (?)  उपशय : =समीप---शयनम्।

40.हस्त---आदाने चे : अस्तेये =पुष्प---प्रचाय :। हस्त---आदाने किम् ? वृक्ष---अग्रस्थानां फलानां यष्ट्या प्रचयं करोति। अस्तेये किम् ? पुष्प---प्रचय : चौर्येण।

41.निवास---चिति---शरीर---उपसमाधानेषु आदेश : च क : =एषु  चिनीते : घज् आदेश : च क :। उपसमाधानं राशीकरणं तत् च धातु---अर्थ :। काशी---निकाय :। आकायम् अग्निं चिन्वीत। शरीरं कायम्। समूहे गोमय---निकाय :।

42.संघे च अनौत्तराधर्ये =चे : घञ् आदेश : च क :। चे : घञ् आदेश : च क :। भिक्षु---निकाय :।

संघ : =प्राणि---समूह :। अनौत्तराधर्ये किम् ? सूकर---निकाय :। संघे किम् ? ज्ञान---कर्म---समुच्च्य :।

43.कर्म---व्यतिहारे णच् स्त्रियाम् =स्त्रीलिङ्गे भावे णच् स्यात् कर्म---व्यतिहारे। व्यावक्रॊशी। व्यावहासी।
 44.अबिविधौ भावे इनुण् =अण् इनुण :। इन् अणि(इनुणि) अनपत्ये =सांराविणं वर्तते।

45.आक्रोशे अव---न्यो : ग्रह : =अव नि एतयो : ग्रहे : घञ् स्यात् शापे। अवग्राह : ते भूयात्।

अभिभव : इति अर्थ :। निग्राह : ते भूयात्। बाध : इति अर्थ :। आरोशे किम् ? अवग्रह : पदस्य। निग्रह : चोरस्य।

46.प्रे लिप्सायाम् =पात्र---प्रग्राहेण चरति भिक्षु :।

47.परौ यज्ञे =उत्तर : परिग्राह :। स्फयेन वेदे : स्वीकरणम्।

48.नौ वॄ धान्ये =नीवारा :। धान्ये किम् ? निवरा कन्या।

49.उदि श्रयति---यौति---पू---द्रुव : =उच्छ्राय :। उद्याव :। उत्पाव :। उद्राव :।

50.विभाषा ङि रु---प्लवो : =आराव :. आरव :। आप्लाव :,  आप्लव :।

51.अवे ग्रह : वर्ष---प्रतिबन्धे =विभाषा इति वर्तते। अवग्रह :। अवग्राह :। वर्ष्---प्रतिबन्धे किम् ? अवग्रह : पदस्य।

52.प्रे वणिजाम् =तुला---प्रग्राहम् or तुला--प्रग्रहम्।

53.रश्मौ च =प्रग्राह :। प्रग्रह :।

54.वृणोते : आच्चादने =प्रवार :। प्रवर :।

55.परौ भुवौ अवज्ञाने =परिभाव :। परिभव :। अवज्ञाने किम् ? सर्वत : भवनं परिभव :।

56.ए : अच् =चय :। जय :।पाण :।

57.ऋत्---ओ : अप् =ऋ---वर्ण---अन्तात्, उ---वर्ण---अन्तात् अप्। कर :, गर :,यव :, लव :, स्तव :,

पव :, शर :।

58.ग्रह---वृ---दृ---निश्चि---गम : च =ग्रह :। वर :। दर :। निश्चय :। गम :।

59.उपसर्गे अद : =प्रघस :।(Refer 38th सूत्र of 4th पाद of 2nd अध्याय : =घञ्---अपो : च।))

60.नौ ण च =नौ उपपदे(उपसर्गे) अदे : ण : स्यात् अप् च। न्याद :। निघस :।

61.व्यध---जपो : अनुपसर्गे =अप् स्यात्। व्यध :। जप :। उपसर्गे तु आव्याध :। उपजाप :।

62.स्वन---हसो : वा =अप् पक्षे घञ्। स्वन :, हस :। स्वान : हास :। उपसर्गे घञ् एव । प्रस्वान :। प्रहास :।

63.यम : सम्---उप---निविषु =संयम :, संयाम :। उपयम :, उपयाम :। नियम :, नियाम :।

64.नौ गद---नद---पठ---स्वन : =निगद :, निगाद :। निनद : निनाद :। न्पठ :, निपाठ :। निस्वन :, निस्वान :।

65.क्वणे वीणायां च =निक्वण :, निक्वाण :।

66.नित्यं पण : परिमाणे =मूलक---पण :। शाक---पण :। परिमाणे किम् ? पाण :।

67.मद : अनुपसर्गे =धन---मद :। उपसर्गे =उन्माद :।

68.प्रमद---संमदौ हर्षे =हर्शे किम् ? प्रमाद :।संमाद :।

69 .सम्--उद : रज :पशुषु =सं---पूर्व :अजि : समुदाये उत्---पूर्वस्य प्रेरणे तस्मात् प्शु---विषयकात् अप् स्यात्। समज : =पशूनां संघ :। उदज : पशूनां प्रेरणम्। पशुषु किम् ? समाज : ब्राह्मणानाम्। उदाज : क्षत्रियाणाम्।

70.अक्षेषु ग्लह  =अक्षस्य ग्लह :। अक्षेषु किम् ? पादस्य ग्राह :।(ग्लाह : ?।)

71.प्रजने सर्ते : =प्रजनं प्रथम---गर्भ---ग्रहण्म्। गवां उपसर :।

72.ह्व : संप्रसारणं च नि---अभि---उप---विषु =निहव :, अभिहव :, उपहव:, विहव :। एषु किम् ?

प्रह्वाय :।

73.आङि युद्धे =आहव :। युद्धे किम् ? आह्वाय :।

74.निपानम् आहाव =अहाव :।(smaall water tub constructed near a well.)

75.भावे अनुपसर्गस्य =हव :।

76.हन : च वध : =चात् घञ्। वध :, घास :।

77.मूर्तौ घन : =मूर्ति : =काठिन्यम्। अभ्र---घन :।

78.अन्तर्घन : देशे =वाहीक---ग्राम---विशेषस्य संज्ञा इयम्। अन्तर्घण इति पाठान्तरम्।

79.अगार---एकदेशे प्रघण : प्रघाण : च =द्वार--- देशे प्रकोष्ठौ अलिन्दौ आभ्यन्तरौ बाग्व : च। तत्र बाह्ये प्रकोष्ठे निपातनम् इदम्।

80.उद्घन : अत्याधानम् =अत्याधानम् =उपरि स्थापनम्। काष्ठे अन्यानि काष्ठानि स्थापयित्वा तक्ष्यन्ते   तत् उद्घन :।

81.अपघन : अङ्गम् =पाणि : or पाद :। अपघात : अन्य :।

82.करणे अय :--- वि---द्रुषु =अय :हन्यते अनेन इति अयोघन : । विघन :। द्रुघन : or द्रुघण : =

कुठार :।

83.स्तम्बे क च =(करणे) स्तम्बघ्न :, स्तम्ब---घन :।

84.परौ घ : =(करणे) परिघ :।

85.उपघ्न : आश्रये =आश्रय : =सामीप्यम्। पर्वतेन उपहन्यते सामीप्येन गम्यते =उपघ्न :।

86.संग---उद्घौ गण---प्रशम्सयो : =संघ : =गण :। उद्घ : =प्रशंस :।

87.निघ : निमितम् =निघा : वृक्षा : =समारोह---परिणाहा : इति अर्थ :। समन्तात् निमितम् =निमितम्।

88.ड्वित : क्त्रि : =अयं भाव : स्वभावात्। उप्त्रिमम्।

89.ट्वित : अथुच् =अयं भाव : स्वभावात्।टुवेपृ =वेपथु :। श्वयथु :।

90.यज---याज---यत--विच्छ---प्रच्छ---रक्ष : नङ् =यज्ञ :, याञ्चा, यत्न :, विश्न :, प्रश्न :, रक्ष्ण :।

91.स्वप : नन् =स्वप्न :।

92.उपसर्गे घो : कि : =प्रधि :। अन्तर्धि :। उपाधि :।

93.कर्मणि अधिकरणे च =जलानि धीयन्ते अस्मिन् इति जलधि :।

94.स्त्रियां क्तिन् =(भावे) कृति :। चिति :।

95.स्था---गा---पा---पच : भावे =प्रस्थिति :। संगीति :। संपीति :। पक्ति :|

96.मन्त्रे वृष---इष---पच---मन---विद---भू---वी---रा : उदात्त : =वृष्टिं दिव :। सुम्नम् इष्टये पचात् पक्तीरुत। इदं ते नव्यसी मति :। वित्ति :। भूति :। अग्न आयाहि वीतये। रातौ स्यामो भयास :।

97.ऊति---यूति---जूति---साति---हेति---कीर्तय : च =एते निपात्यन्ते। अवे : ऊति :।

98.व्रज---यजो : भावे क्यप् =वज्या। इज्या।

99.संज्ञायां समज----निषद---निपत---मन---विद---षुञ्---शीङ्---भृञ्---इण : =समजा =सभा।

निषद्या =आपण :। निपत्या =पिच्छिल =भूमि :। मन्या =गल---पार्श्व---शिरा। विद्या।

सुत्या =अभिषव :।शय्या। भृत्या। इत्या =शिबिका।

100.कृञ : श च -क्यप् =कुत्या। चात् क्तिन् कृति :। 

101.इच्छा =इषे : भावे यक् अभाव : च शे निपायते। =इच्छा।

102.अ प्रत्ययात् =प्रत्यय---अन्तेभ्य : धातुभ्य : स्त्रियाम् अकार---प्रत्यय : स्यात्। चिकीर्षा। पुत्र---काम्या ।

103.गुरो : च हल : =गुरुमत : हल्---अन्तात् स्त्रियाम् अकार :स्यात्। ईहा। ऊहा। गुरो : किम् ?

भक्ति :। हल : किम् ? नीति :।

104.षित्---भिद्---आदिभ्य : अङ् =जॄष् =जरा। त्रपुष् =त्रपा। भिदा।(विदारण एव अयम्।)   भित्ति : अन्या। छिदा =मृजा।

105.चिन्ति---पूजि---कथि---कुम्बि---चर्च : च =चिन्ता। पूजा। कथा। कुम्बा।  चर्चा।

106.आत् : च उपसर्गे =(अङ् स्यात्) प्रदा। उपदा।

107.णि आस---श्रन्थ : युच् =करणा। हरणा। आसना। श्रन्था।

108.रोग---आख्यायां ण्वुल् बहुलम् =प्रच्छर्दिका। प्रवाहिका। विचर्चिका। क्वचित् न  =शिर : अर्ति :।

109.संज्ञायाम् =उद्दाल---पुष्प---भञ्जिका।
110.
विभाषा आख्या---परिप्रश्नयो : इञ् च =परिप्रश्ने आख्याने चगम्ये इञ् स्यात् चात् ण्वुल्। विभाषा---उक्ति : यथा---प्राप्तम् अन्ये अपि। कां त्वं कारिं कारिकां क्रियां  कृत्यां कृतिं वा अकार्षी :। सर्वां कारिं कारिकां क्रियां कृत्यां कृतिं वा अकार्षम्।        

111.पर्याय---अर्हण---उत्पत्तिषु ण्वुच् =पर्याय : =परिपाटीक्रम :। भवत : आसिका। अर्हणम् अर्ह :। योग्यता। भवान् इक्षु---भक्षिकाम् अर्हति। उत्पत्तौ =इक्षु---भक्षिका उपपादि।        

112.आक्रोशे नञ्यनि : =विभाषा इति निवृत्तम्। नञि उपपदे नि : स्यात् आक्रोशे। अजीवनि : ते शठ भूयात्। आप्रयाणि :।

113.कृत्य---ल्युट : बहुलम् =भावे कर्तरि च कारके संज्ञायाम् इति च निवृत्तम्। राज्ञा भुज्यन्ते राज---भोजना : शालय :।

114.नपुंसके भावे क्त : =हसितं रुदितम्।

115.ल्युट् च =हसनं रोदनम्। योग---विभाग : उत्तरअर्थ :।

116.कर्मणि च येन संस्पर्शात् कर्तु : शरीर---सुखम् =येन स्पृश्यमानस्य कर्तु : शरीर ---सुखम् उत्पद्यते तस्मिन् कर्मणि उपपदे ल्युट् स्यात्। पय : पानं सुखम्। कर्तरि इति किम् ? गुरो : स्नापनं सुखम्।  इह गुरु : कर्म।        

117.करण---अधिकरणयो : च =खल :(खल्) प्राक् करण---अधिकरनयो : अधिकार :। इध्म---प्रवश्चन : कुठार :। गो---दोहनी स्थाली।

118.पुंसि संज्ञायां घ : प्रायेण =दन्ता : छद्यन्ते अनेन =दन्तच्छद :। आकुर्वन्ति  अस्मिन् आकर :।

119.गोचर---संचर---वह---व्रज---व्याज---आपण---निगमा : च =एते निपाता :। गोचर : =Grd.

संचर =मार्ग। वह : =स्कन्ध :। व्रज :, व्यज : =ताल---वृन्तम्। आपण : =Bazaaar. | चात् कष :। निकष :।

120.अवे तर---स्त्रो : घञ् =अवतार : =कूप---आदे :। अव्स्तार : जवनिका | (Curtain)

121.हल : च =हल् अन्तार् घञ् =रमने अस्मिन् योगिन : इति राम :। अपमृज्यते अनेन रोगा : इति अपामार्ग :।        

122.अध्याय---न्याय---उद्याव---संहारा : च =अधीयन्ते अस्मिन् इति अध्याय :।

123.उदङ्क : अनुदके =घृत---उदङ्क : =चर्ममयं---भाण्डम्। अनुदके किम् ? उदक : उदञ्चन :।

124.जालाम् आनाय : = आनीयन्ते मत्स्य---आदय : अस्मिन् इति अनाय :।(net by which fishermen catch fishes.)

125.खन : घ च = चात् घञ्। आखन :। आखान :।

126.ईषत्---दु: ---सुषु कृच्छ्र---अकृच्छ---अर्थेषुखल् =कृच्छ्रे =दुष्कर :। अकृच्छ्रे =ईषत्कर :। सुकर  :।

127.कर्तृ---कर्मणो : भू---कृञो : =दुराढ्यंभवम्। ईषत्---आढ्यंकर :।

128.आत : युच् =ईशत्पान :। दुष्पान :। सुपान :।

129.छन्दसि गति--अर्थेभ्य : =सूप---सदन : अग्नि :।(गत्यर्थेभ्य :।

130.अन्येभ्य : अपि दृश्यते =सुवेदनांम् अकृणोत् ब्राह्मणे गाम्।(गत्यर्थेभ्य :।

131.वर्तमान---सामीप्ये वर्तमानवत् वा =Present tense is used for future tense/past tense, when the action takes place immediately aftet/before present tense. कदा आगत : असि ? अयम् आगच्चामि। अयम् आगमम्। कदा गमिष्यासि ? एष गच्छामि or गमिष्यामि।       

132.आशंसायां भूतवत् च =वर्तमान---सामीप्य : इति वर्तते। देव : चेत् अवर्षत्, वर्षति, वर्षिष्यति वा।

धान्यम् अवाप्स्म, वपाम :, वप्स्याम : वा।

133.क्षिप्र---वचने लृट्(lrut) =वृष्टि : चेत् क्षिप्रं यास्यति। सीघ्रं वप्स्याम :।

134.आशंसा---वचने लिङ् =गुरु : चेत् आयात् आशंसे अधीयीय। आशंसे शीघ्रम् अधीयीय।

135.न अनद्यनवत् क्रिया---प्रबन्ध---सामीप्ययो : =क्रियाया : सातत्ये सामीप्ये च गम्ये लङ् लुटौ न।

यावत्---जीवम् अन्नम् अदात् दास्यति वा।

136.भविष्यति मर्यादा---वचने अवरस्मिन् =भविष्यति काले मर्यादा---उक्तौ अवरस्मिन् प्रविभागे अनद्यनवत् न। य : अयम् अध्वा गन्तव्य : आपाटलिपुत्रात् तस्य यत्---अवरं कौशाम्ब्या : तत्र स्क्तून् वप्स्याम :।

137.काल---विभागे च अनहोरात्राणाम् =य :अयं वत्सर :आगामी तस्य यत् अवरम् आग्रहायण्या : तत्र युक्ता : अध्येष्यामहे।

138.परस्मिन् विभाषा =य : अयं वत्सर : आगामी तस्य यत् परम् अद्येष्यामहे, अध्येतास्महे।

139.लिङ् निमित्ते लृङ्(lrung) =क्रिया---अतिपत्तौ भविष्यति इति एव =सुवृष्टि चेत् अभविष्यत् सुभिक्ष्यम् अभविष्यत्।

140.भूते च =पूर्व---सूत्रं संपूर्णम् अनुवर्तते। इदं सूत्रं उताप्यो : इति आदौ प्रवर्तते।(इति

विवेक :।) This सूत्र is to be studied along with the next सूत्र। 141.वा उत--- अप्यो : = वा आ उत---अप्यो : इति छेद :। उत---अप्यो : इति अत : प्राग्भूते लिङ् निमित्ते लृङ्(lrung) वा इति अधिक्रियते।

142.गर्हायां लट् अपि---जात्वो : =आभ्यां योगे लट् स्यात् काल---त्रय---योगे गर्हायाम्। अपि भार्यां त्यजसे जातु गणिकाम् आधत्से।

143.विभाषा कथमि लिङ् च =गर्हायाम् इति एव लिङ् स्यात्। चात् लट् स्यात्। कथं धर्मं त्य्जे : त्यजसि वा।

144.किंवृत्ते लिङ्---लृटौ(lrutau) =गर्हायाम् इतिएव। विभाषा तु न अनुवर्तते। क : कतर : कतम : वा हरिं  निन्देत् निन्दयिष्यति वा।

145.अनवकॢप्ति अमर्षयो : अकिंवृत्ते अपि =गर्हायाम् इति निवृत्तम्। अनवकॢप्ति : =असंभावना। अमर्ष : =अक्षमा। न संभावयामि न मर्षये वा भवान् हरिं निन्देत् निन्दयिष्यति वा।

146.किंकिला---अस्त्यर्थेषु लृट् =किंकिला इति समुदाय : क्रोध---द्योतक उपपदम्। अस्त्यर्था : =असि---भवति---विद्यते। न श्रद्धधे न मर्षये वा किंकिल त्वं शूद्र---अन्नं भोक्ष्यसे। अस्ति भवति विद्यते वा शूद्रीं गमिष्यसि। अत्र लृङ् न।

147.जातु---यदो : लिङ् =जातु यत् यदा यदि वा त्वादृश : हरिं निन्देत् न अवकल्पयामि न वा मर्षयामि।

148.यच्च---यत्रयो : =यच्च यत्र वा त्वम् एवं कुर्या : न श्रद्धधे न मर्षयामि वा।

149.गर्हायाम् च =अनवकॢप्ति ---अमर्षयो : इति निवृत्तम्। यच्च यत्र व त्वं शूद्रं याजये : अन्यायं तत्।

150.चित्रीकरणे च =यच्च यत्र वा त्वं याजये : आश्चर्यम् एतत्।

151.शेषे लृट् अयदौ =यच्च---यत्राभ्याम् अन्यस्मिन् उपपदे चित्रीकरणे गम्ये धातो : लृट् अयदौ। आश्चर्यम् अन्ध : नाम कृष्णं द्रक्ष्यति(paradoxical example is when धृतराष्त्र : कृष्णम् ददर्श यदा कृष्ण : विश्वरूपं दधार दुर्योधन---सभायाम्।) आश्चर्यं यदि स: अधीयीत।  हरि :। समर्थयो : किम् ? उत=विचार :। : दण्ड : पतिष्यति अपि धास्यति द्वारम्। प्रश्न : प्रच्छदनं च गम्यते।

इत : प्रभृति क्रिया---अतिपत्तौ भूते अपि नित्य : लङ् नित्य : लृङ्।

153.काम---प्रवेदने अकच्चिति =स्व---अभिप्राय---आविष्करणे गम्यमाने लिङ् स्यात् नतु न्कच्चिति। काम : मे भुञ्जीत भवान्। अकच्चिति किम् ? कच्चित् जीवति।

154.संभावने अलम् इति चेत् सिद्धा---प्रयोगे =अपि गिरिं शिरसा भिन्द्यात्। सिद्धा---प्रयोगे किम् ? अलं कृष्ण : हस्तिनं हनिष्यति।

155.विभाषा धातौ संभावन---वचने अयदि =संभावयामि भुञ्जीत भोक्ष्यते भवान्। अयदि किम् ? संभावयामि यत् भुञ्जीथा : त्वम्।

156.हेतु---हेतुमत : लिङ् =कृष्णं नमेत् चेत् सुखं यायात्। कृष्णं नंस्यति चेत् सुखं यास्यति।

157.इच्छा---अर्थेषु लिङ्---लोटौ =इच्छामि भुञ्जीत वा भुङ्क्तां वा भवान्। एवं कामये प्रार्थये इति आदि योगे बोध्यम्।

158.समान---कर्तृकेषु तुमुन् =अक्रिया---अर्थ---उपपदम् एतत्। इच्छति भोक्तुम्। वष्टि वाञ्छति वा।

159.लिङ् च =भुञ्जीय(भुञ्जीये) इति इच्चति। 

160.इच्छा---अर्थेभ्य : विभाषा वर्तमाने =लिङ् स्यात्। लिङ् स्यात्। पक्षे लट्।

161.विधि---निमन्त्रण---आमन्त्रण---अधीष्ट---संप्रश्न---प्रार्थनेषु लिङ् =विधि : =प्रेरणम्। निमन्त्रणम् =नियोग---करणम्। आवश्यके श्राद्ध---भोजन---आदौ दौहित्र---आदे : प्रवतनम्। आमन्त्रणम् =कामचारअनुज्ञा। अधीष्ट =सत्कार---पूर्वक : व्यापार :। संप्रश्न : ।

162.लोट् च =लोट् च स्यात् पूर्वसूत्र---द्योत्य---अर्थेषु।

163.प्रेष---अतिसर्ग---प्राप्तकालेषु कृत्या : =प्रेष :(प्रैष :)विधि :। अतिसर्ग : =कामचार---अनुज्ञा। भवता यष्टव्यम्। भवान् यजताम्। त्वया गन्तव्यम्। गमनीयम्। गम्यम्।

164.लिङ् च ऊर्ध्व---मौहूर्तिके =प्रष---आदय : अनुवर्तन्ते। मुहूर्तात् ऊर्ध्वं यजेत। यजतां वा। यष्टव्यम्।

165.स्मे लोट् =पूर्वसूत्र---विषये लिङ्। कृत्यानां च अपवाद :। ऊर्ध्वं मुहूर्तात् यजतां स्म।

166.अधीष्टे च =त्वं स्म अध्यापय।ह्हल : च---

167.काल---समय---वेलासु तुमुन् =काल : समय : वेला अनेहा वा भोक्तुम्।

168.लिङ् यदि =काल : समय : वेला वा यत् भुञ्जीत भवान्।

169.अर्हे कृत्य---तृच : च =चात् लिङ्। त्वं कन्यां वहे :।

170.आवश्यक---अधमर्णयो :(अधम---ऋणयो :) णिनि : =अवश्यंकारी। शतं दायी।

171.कृत्या : च =अवश्यं हरि : सेव्य :। शतं देयम्।

172.शकि लिङ् =चात् कृत्या : =त्वं भारं वहे :। वोढव्य : त्वया।

173.आशिषि लिङ्---लोटौ =स्पष्टम् अर्थम्।

174.क्तिच्---क्तौ च संज्ञायाम् =भवतात्। भूति :।

175.माङि लुङ् =मा (अ)कार्षी :।

176.स्म उत्तरे लङ् च =स्म उत्तरे माङि लङ् स्यात् चात् लुङ्।

उणादय : ---इङ :---निवास---व्यधजप :---अप्घन : अङ्गम्---इच्छा---हल : च---वोताप्यो :---विधि निमन्त्रण षोडश।                                          Pro.Total =955 + 176 =1131.

                                 । इति तृतीय अध्यायस्य तृतीय---पाद : समाप्त :।

 

 

                                                          तृतीय अध्याय : चतुर्थ पाद :

1.धातु---संबन्धे प्रत्यया : =वसन् ददर्श्। भूते लट्। सोमयाज्यस्य पुत्र : भविता।

2.क्रिया---समभिहारे लोट् हि---स्वौ च त्---ध्वमो : =स्पष्टम् अर्थम्।

3.समुच्चये अन्यतरस्याम् =अनेक---क्रिया---समुच्चये द्योत्ये प्रक्---उक्तमं वा स्यात्।

4.यथा---विधि---अनुप्रयोग : पूर्वस्मिन् =अध्ये लोट् विधाने, लोट् प्रकृतिभूय : एव धातु : अनुप्रयोज्य :।

5.समुच्चये सामान्य---वचनस्य =समुच्चये लोट् विधौ सामान्य---अर्थस्य धातो : अनुप्रयोग : स्यात्।

6.छन्दसि लुङ्---लङ्---लिट : =धातु---अर्थानां संबन्धे सर्व---कालेषु एते वा स्यु :। देव : देवेभि : आगमत्। अथ लोट् अर्थे लङ्/लुङ्। इदं तेभ्यो अकरं नम :। अग्निम् अद्य होतारम् अवृणीत अयं यजमान :। लिट् =अद्य ममार। अद्य म्रियते इति।

7.लिङ् अर्थे लेट् =प्र ण आयूँषि तारिषत्।

8.उपसंवाद---आशंकयो : च =पण---बन्धे आशंकायां च लेट् स्यात्। अहम् एव पशूनाम् ईशै। नेज्जिह्नायन्त : नरकं पताम।  

9.तुम्---अर्थे से--क्सेन्---असेन्---अध्यै---अध्यैन्---कध्यै---कध्यैन्---शध्यै---शध्यैन्---तवै---तवेङ्---तवेन : =से =वक्षे राय :। क्सेन् =ता वामेषे। क्सेन् =पक्षे नित् स्वर : =गवाम् इव श्रियासे। असेन् =नित्वात् आदि : उदात्त : =शराद : जीवसे धा :। अध्यै, अध्यैन् =जठरं पृणध्यै। कध्यै, कध्यैन् =पक्षे नित् स्वर : =आहुबध्यै। शध्यै =राधस : सह मादयध्यै। शध्यैन् वायवे पिबध्यै। तवे =दातावा उ।  तवेङ् =सूतवे। तवेन् =कैर्तवे।

10.प्रै रोहिष्यै अव्यथिष्यै =एते तुम्---अर्थे निपात्यन्ते। प्रयातुम्, रोढुम् and अव्यथितुम् इति अर्थ :।

11.दृश्ये विख्ये च =द्रष्टुम्, विख्यातुम् इति अर्थ :।

12.शकि णमुल्---कमुलौ =विभाजं न अशकत्। अपलुपं न अशकत्। विभक्तु, अपलप्तुम् इति अर्थ :।

13.ईश्वरे तोसुन्---कसुनौ =ईश्वर : विचरितो :। ईश्वर : विलिख । विचरितुं, विलेखितुम् इति अर्थ :।

14.कृति---अर्थे तवै---केन्---केन्य---त्वन : =न् म्लेच्छितवै। अवगाहे। विदृक्षेण्य :। भूर्यस्पष्ट कर्त्वम्।

15.अवचक्षे च =रिपुणा न आचचक्षे। अवख्यातव्यम् इति अर्थ :।

16.भाव---लक्षणे स्था--इण्---कृञ्---वदि---चरि---हु---तमि---जनिभ्य : तोसुन् =आसंस्थातो : सीदन्ति। समाप्ते : सीदन्ति इति अर्थ :। उदेतो :। अपकर्तो :। प्रवदितो :। प्रचरितो :। होतो :। आतमितो । कामम् आवजनितो : भवाम :।:

17.सृपि---तृदो : कसुन् =भाव---लक्षणे इति एव। पुरा क्रूरस्य विसृप : विरप्शिन्। पुरा जत्रुभ्य :

आतृद :।

18..अलं---खल्वो : प्रतिषेधयो : प्राचां क्त्वा =अलं दत्वा। पीत्वा खलु, खलु उक्त्वा। अलं---खल्वो : किम् ? मा (अ)कार्षीत्। प्रतिषेधयो : किम् ? अलंकार :।

19.उदीचां माङ : व्यतीहारे =अपमित्य याचते।

20.परावर---योगे च =अप्राप्य नदीं पर्वत :।

21.समान---कर्ट्रुकयो : पूर्वकाले =पूर्वकाले-भुक्त्वा व्रजति।

22.आभीक्ष्ण्ये णमुल् च =पौन:पुन्ये द्योत्ये पूव---विषये णमुल् स्यात्। क्त्वा च। द्वित्वम्। स्मारं स्मारं नमति शिवम्। स्मृत्वा स्मृत्वा नमति शिवम्।

23.न यत् अनाकाङ्क्ष्ये =यत् अयं भुङ्क्ते तत : पठति। अनाकाङ्क्ष्ये किम् ? यत् अयं भुङ्क्त्वा व्रजति तत : अधीते।

24.विभाषा अग्रे---प्रथम---पूर्वेषु =क्त्वा णमुल् पक्षे लट् आदय :। अग्रे भोजं, अग्रे भुक्त्वा वा, प्रथमं

भोजं, प्रथमं भुक्त्वा वा, पूर्वं भोजं पूर्वं भुक्त्वा वा व्रजति। =

25.कर्मणि आक्रोशे खमुञ् =चौरङ्कारम् आक्रोशति। चोर---शब्दम् उच्चार्य इति अर्थ :।

26.स्वादुमि णमुल् =स्वादुङ्कारं भुङ्क्ते।

27.अन्यथा---एवम्---कथम्---इत्थम्---सुसिद्धाप्रयोग : चेत् =अन्यथाकारम्, एवंकारम्, कथंकारम्,  भुङ्क्ते।

सिद्धेति किम् ? शिर : अन्यथा कृत्वा भुङ्क्ते।

28.यथा---तथयो : असूया---प्रतिवचने =यथाकारम् अहं भोक्ष्ये, तथाकारं भोक्ष्ये किं तव आनने।

29.कर्मणि दृशि---विदो : साकल्ये =कन्यादर्शं वरयति। सर्वा : कन्या : इति अर्थ :। ब्राह्मणवेदं भोजयति। यं यं ब्राह्मणं जानाति, लभते, विचारयति वा तं सर्वं भोजयति इति अर्थ :।

30यावति विन्द---जीवो : =यावत् वेदं भुङ्क्ते। यावत् लबते तावत् इति अर्थ :। याज्जीवम् अधीते।

31.चर्म---उदरयो : पूरे : =चर्म---पूरं भुङ्क्ते। उदर---पूरं भुङ्क्ते।

32.वर्ष---प्रमाण : ऊलोप : च अस्य अन्यतरस्याम् =गोष्पद---पूरं वृष्ट : देव :। गोष्पद---प्रवृष्ट : देव :।

उपपदस्य मा भूत्। मूषिका--बिलप्रम्।

33.चेले : क्नोपे : =चेल---क्नोपं वृष्ट : देव :। वस्त्र---क्नोपम्। वसन---क्नोपम्। (क्नूयी शब्दे)

34.निमूल---समूलयो : कष : =निमूल---काषं कषति। समूल---काषं कषति।

35.शुष्क---चूर्ण---रूक्षेषु पिष : =शुष्क---पेषं पिनष्टि। शुष्कं पिनष्टि इति अर्थ :। चूर्ण---पेषम्। रूक्ष---पेषम्।

36.समूल---अकृत---जीवेशु हन्---कृञ्---ग्रह : =समूल---घातं हन्ति। अकृत---कारं करोति। जीव---ग्राहं गृह्णाति =जीवन्तं गृह्णाति इति।

37.करणे हन :=पाद---घातं हन्ति।(पादेन हन्ति।)

38.स्नेहने पिष : =उद---पेषं पिनष्टि। उदकेन पिनष्टि इति अर्थ :।

39.ह्सते वर्ति---ग्रहो : =हस्त---वर्तं वर्तयति। हस्तेन गुलिकां करोति। हस्त---ग्राहं गृह्णाति।

40.स्वे पुष : =स्व---पोषं पुष्णाति।

41.अधिकरणे बन्ध : =चक्र---बन्धं बध्नाति। चक्रे बध्नाति इति अर्थ :।

42.संज्ञायाम् =क्रौञ्च---बन्धं बध्नाति। मयूरिका---बन्धम्। अट्टालिका---बन्धम्।

43.कर्त्रो : जीव---पुरुषयो : नशि---वहो : =जीव---नाशं नश्यति। जीव : नश्यति इति अर्थ :। पुरुष---वाहं वहति। पुरुषं वहति इति अर्थ :।

44.ऊर्ध्वे शुषि---पूरो : =ऊर्ध्व---शोषं शोषयति।(वृक्ष :।) ऊर्ध्व---पूरं पूर्यते घट :।

45.उपमाने कर्मणि च =चात् कर्तरि। घृत---निधायं निहितं जलम्। घृतम् इव सुरक्षितम्। अजक---नाशं नष्ट :। अजक इव नष्ट :।

46.कष---आदिषु यथा---विधि अनुप्रयोग : =Refer 34th सूत्र of this पाद and apply णमुल्।

47.उपदंश : तृतीयायाम् =इत : प्रभृति पूर्व---काल : इति संबोध्य :। मूलक---उपदंशं भुङ्क्ते। मूलकेन उपदंशम्।

48.हिंसा---अर्थानां च समान---कर्मकाणाम् =तृतीय---अन्ते उपपदे अनुप्रयोग---धातुना समान---कर्मकात् णमुल् स्यात्। दण्ड---उपघातं गा: कालयति। दण्डेन उपघातम्। समान---कर्मकाणाम् इति किम् ? दण्डेन चोरम् आहत्य गा : कालयति।

49.सप्तम्यां च उप---पीड---रुध---कर्ष : =सप्तमी चात् तृतीया। पार्श्व---उपपीडं शेते। व्रज---उपरोधं गा : स्थापयति।

50.समासत्तौ =केश---ग्राहं युध्यन्ते। हस्त---ग्राहं युध्यन्ते। (3rd or 7th case.)

51.प्रमाणे च =द्व्यङ्गुल---उत्कर्षं खण्डिकां छिनत्ति।

52.अपादाने परीप्सायाम् =परीप्सा त्वरा। शय्या--उत्थायं धावति।(5th case.)

53.द्वितीयायां च =यष्टि---ग्राहं युध्यन्ते। लोष्ट---ग्राहं युध्यन्ते।

54.स्वाङे अध्रुवे =द्वितीयायाम् इति एव। अध्रुवे  स्वाङ्गे द्वितीया---अन्ते धातो : णमुल्। भ्रू---विक्षेपं कथयति। अध्रुवे किम् ? शिर : उत्क्षिप्य। येन विना न जीवनं तत् ध्रुवम्। अप्रियस्य  उच्चै :

55.परिक्लिश्यमाने च =(स्वाङ्गे)उर :---प्रतिषेधं युध्यन्ते।

56.विशि---पति---पदि---स्कन्दां व्याप्यमान---आसेव्यमानयो : =(द्वितीयागेह---आदि---द्रव्याणां विश्य---आदि क्रियाभि : साकल्येन संबन्ध : =व्याप्ति :। पौन:पुन्यम् आसेवा। गेह---अनुप्रवेशम् आस्ते। गेहअनुप्रपातम्। गेह---अनुप्रपादम्। गेह---अनुस्कन्दम्।

57.अस्यति---तृषो : क्रिया---अन्तरे कालेषु =द्व्यहम् अत्यासम्। द्व्यह---अत्यासं गा : पाययति। द्व्यह---तर्षम्।

58.नाम्न्या दिशि---ग्रहो : =द्वितीयाम् इति एव। नामा(नाम)--- आदेशम् आचष्टे। नाम---ग्राहम् आह्वयति।

59.अव्यये अयथा---अभिप्रेत---आख्याने क्त्वा---णमुलौ =अयाथा---अभिप्रेत---आख्यानं नाम अप्रियस्य उच्चै : प्रियस्य नीचै : कथनम्। उच्चै :कृत्य,  उच्चै : कृत्वा,  उच्चै:कारम् अप्रियम् आचष्टे। नीचै:कृत्य, नीचै : कृत्वा, नीचै : कारं प्रियं ब्रूते।

60.तिर्यचि अपवर्गे =तिर्यक्कृत्य, तिर्यक् कृत्वा, तिर्यक्कारं(समाप्य) गत :। अपवर्गे किम् ? तिर्यक् कृत्वा काष्ठं गत :।  

61.स्वाङ्गे तस् प्रत्यये =मुखत : कृत्वा, मुखत : भूत्वा। मुखत :कारम्, मुखत : भावम्।

62.नाना---अर्थ---प्रत्यये अच्व्यर्थे =ननाकृत्वा। नानाकरम्।

63.तूष्णीमि भुव : =तूष्णींभूय। तूष्णीं भूत्वा। तूष्णींभावम्।

64.अन्वचि आनुलोम्ये =अन्वग्भूय आस्स्ते।

65.शकधृष---ज्ञा---ग्ला---घट---रभ---लभ---क्रम---सह---अर्ह---अस्ति अर्थेषु तुमुन् =एषु उपपदेषु  धातो : तुमुन् स्यात्। शक्नोति भोक्तुम्।

66.पर्याप्ति---वचनेषु अलम् अर्थेष् =पर्याप्ति : पूर्णता। पर्याप्त : भोक्तुं प्रवीण :। पर्याप्ति---वचनेषु किम् ? अलं भुक्त्वा। अलम् अर्थेषु किम् ? पर्याप्तिं भुङ्क्ते।

67.कर्तर् कृत् =कृत् प्रत्यय : कर्तरि स्यात्।

68.भव्य---गेय---प्रवच्नीय---उप्स्थानीय---जन्य---आप्लाव्य---आपात्या वा =एते कृत्यन्ता : कर्तरि वा  निपात्यन्ते। (वा-सकर्मक---अकर्मक---भावकर्मणि।)

69.ल : कर्मणि च भावे च अकर्मकेभ्य : =लकारा : सकर्मकेभ्य : कर्मणि कर्तरि च स्यु :।

अकर्मकेभ्य : भावे कर्तरि।

70.तयो :एव कृत्य---क्त---खल्---अर्था : =एते भाव---कर्मणो एव स्यु :।

71.आदि कर्मणि क्त : कर्तरि च =आदि कर्मणि य : क्त : स : कर्तरि स्यात्। चात् भाव---कर्मणो :।

72.गति---अर्थ---अकर्मक---श्लिष---शीङ्---स्था---आस---वस---जन---रुह---जीर्यतिभ्य : च =गंगां गत :। पक्षे प्राप्ता गंगा। शिवाम् उपासित :। लक्षीम्  आश्लिष्ट : हरि :।

73.दाश---गोब्नौ संप्रदाने =एते संप्रदाने कारके निपात्यन्ते। दशन्ति तस्मै दाश :। गां हन्ति तस्मै गोघ्न : अतिथि :।

74.भीम---आदय : अपादाने =भीम :, भीष्म : etc.

75.ताभ्याम् अन्यत्र उण्---आदय : =संप्रदान---परामर्श---अर्थं ताभ्याम् इति। तत :असौ तन्तु :। वृत्तं तत् इति वर्त्म। चरितं तत् इति चर्म।

76.क्त : अधिकरणे च ध्रौव्य गति---प्रत्यवसान---अर्थेभ्य : च =एभ्य : अधिकरणे क्त : स्यात्। चात् यथा---प्राप्तम्। मुकुन्दस्य असित---मितम्। ध्रौव्यं, स्थैर्यम्।

77.लस्य =अधिकार : अयम्।

78.तिप्--तस्---झि---सिप्---थस्--- -थ---मिप्---वस्---मस्---ता---तां---झ---थास्---थां---ध्वम्---इट्---वहिङ्---महिङ् =एते अश्टादश ल---आदेशा : स्यु :।

79.थास : से =टित : आत्मनेपदानं टे : ए =टित : लस्य अत्मनेपदानां टे : एत्वं स्यात्। एधते।

80.थास : से =टित : लस्य थास : से स्यात्। एधसे।

81.लिट : त---झयो : एश् इरेच् =लिट् आदेशयो : तझयो : एश्---इरच् एतौ स्त :। एकार---उच्चारणं ज्ञापकं तङ्---आदेशानां टे : एत्वं न इति।

82..परस्मैपदानां णलतुसुस्थलथुसण्ल्वमा : =लीट : तिप्---आदीनां नवानां णल्---आदय : नव : स्यु :।

83.विद : लट : वा =वेत्ते : लट : णल्---आदय : वा स्यु :।

84.ब्रुव : पञ्चानाम् आदित : आह : ब्रुव : =ब्रुव : लट : परस्मैपदानाम् आदित : पञ्चानाम्

आदित : :णल्---आदय : पञ्च : वा स्यु : ब्रुव : च आह---आदेश :।

85.लोट : लङ्वत् = लोट : लङ् इव कार्यं स्यात्। तेन ताम् आदय : सलोप : च (तथा  "हि ")

86..ए : रु : = लोट : इकारस्य उ : स्यात्।(भवतु।)

87.से : हि अपित् च =से : हि : स्यात् स : अपित् च।

88.वा छन्दसि =हि : अपित् वा।

89.मे : नि : स्यात् =लोट : मे : नि : स्यात्।

90.आम् एत : =लोटस्य आं स्यात्  एधताम्। एधेताम्। एधन्ताम्।

91.स---वाभ्यां व---आमौ =स---वाभ्यां परस्य लोट्---एत : क्रमात् व आम् एतौ स्त :। एधस्व। एधेताम्। एधध्वम्।

92.आट् उत्तमस्य पित् च =लोत् उत्तमस्य आट् आगम : स्यात् स : पित् च। हि---न्यो : उत्वं न। इकार---उच्चारण---असामर्त्यात्। भवानि। भवाव। भवाम।

93.एत : ऐ =लोट् उत्तमस्य एत : ऐ स्यात्। आम : अपवाद :। एधै। एधावहै। एधामहै।

94.लेट : अट्---आटौ = लेट : अट् आट् स्यात्। आगमौ स्त : तौ च पित्तौ।

95.आत : ऐ =लेट : आकारस्य ऐ स्यात्। स्तेभि : सुप्रयस मादयै ते।

96.वा एत : अन्यत्र =लॆट : एकारस्य ऐ स्यात् वा। आत : ऐ इति अस्य विषयं विना। पशूनाम् ईशै।

ग्रहा : गृह्णन्तै। अन्यत्र किम् ? सुप्रयस मादयै ते।

97.इत : च लोप : परस्मैपदेषु =लॆट : तिङाम् इत : लोप : वा स्यात्।

98.स : उत्तमस्य =लेट् उत्तम सकारस्य वा लोप : स्यात्। करवाव। करवाव :।

99.नित्यं ङित : =सकारस्य ङित् उत्तमस्य नित्यं लोप : स्यात्। भवत्तं भवन्तु। ? 

100.इत : च =ङित : लस्य परस्मैपदम्---इकार---अन्तं य्त् तस्य लोप : स्यात्। अभवत्।

101.तस्थस्थामिपां तांतंताम : =ङित :चतुर्णां तामादय : क्रमात् स्यु :

102.लिङ् : सीयुत् = स---लोप :। एधेत। एधेयाथाम्।

103.यासुट् परस्मैपदेषु उदात्त : ङित् च =लिङ :परस्मैपदानां यासुट् आगम : स्यात्। स् अ: उदात्त : ङित् च।

104.कित् आशिषि =आशिषि लिङ : यासुट् कित् स्यात्। भूयात्। भूयास्ताम्। भूयासु :।

105.झस्य रन् =लिङ : झस्य रन् स्यात्। एधेरन्।

106.इट : अत् =लिङ् आदेशस्य इट : अत् स्यात्। एधेरन्।

107.सुट् तिथो : लिङ : सकार थकारयो : सुट् स्यात्। सुटा यासुत् न बाध्यते।

108.झे : जुस् =लिङ : झे : जुस् स्यात्। ज : इत्। भवेयु :।

109.सिच्--- अभ्यस्त---विदिभ्य : च = सिच : अभ्यस्तात् विदे : च परस्य ङित् संबन्धिन : झे : जुस् स्यात्।

110.आत : =सिच् लुक् यात् अन्तात् झे : जुस् स्यात्। अभूवन्।

111.लङ : शाकटायस्य एव =अत् अन्तात् परस्य लङ : झे : जुस् वा स्यात्। अयु :। अयान्। यायात् यायाताम्। यायास्ताम्।

112.द्विष : च =लङ : झे : जुस् वा स्यात्। अद्विषु :। अद्विषन्।

113.तिङ्---शित्---सार्वधातुकम् =तिङ : शित :च धातु---अधिकार---उक्त : एतत् संज्ञा : स्यु :।

114.आर्धधातुकं शेष : =तिङ्---शित्---वच : अन्त्य : धातो : विहित : प्रत्यय : एतत् संज्ञ : स्यात्। इट्।

115.लिट् च =लिट्---आदेश---तिङ्---आर्धधातुक---संज्ञ : एव स्यात्।

116.लिङ् आशिषि =आशिषि तिङ् आर्धधातुक---संज्ञ : एव स्यात्।

117.छन्दसि उभयथा =धातु---अधिकारे उक्त : प्रत्यय : सार्वधातुक---आर्धधातुक---उभय---संज्ञ : स्यात्। वर्धन्तु वा सुष्ठुतय :। वर्धयन्तु इति अर्थ :। णि लोप : =विशृण्विरे।

धातुसम्बन्धे---समानकर्तृकयो :---अधिकारणे---स्वाङ्गे---लिट---स्थस्थामिपां सप्तदश।

                                         इति तृतीय---अध्यायस्य चतुर्थ---पाद : समाप्त :। 

                              । तृतीय : अध्याय : समाप्त : । Pro.Total =1131 + 117 =1248 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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