Sunday, April 6, 2014

Shri Panini Hrudayam-Third Adhyaaya - 3rd and 4th paadha


                                         तृतीय---अध्याय : तृतीय---पाद :

1.उण---आदय  बहुलम् =एते वर्तमाने संज्ञायां च बहुलं स्यु :। केचित् अविहिता : अपि ऊह्या :। संज्ञासु धातुरूपा : अपि प्रत्यया : च तत : परे। कर्यात् विद्यात् अनुबन्धम् एतत् शास्त्रम् उणआदिषु। केचित् उण---पाठं पाणिने---महर्षे : अव्युत्पन्नम् इति वदन्ति। इदं विषयं महाभाष्ये विस्तरेण सह व्याख्यातम्।

2.भूते अपि दृश्यन्ते and 3.भविष्यति गम्य---आदय : =उण---आदय : are seen both in past and future tenses.

4.यावत्---पुरा निपातयो : लट् =निपातौ एतौ निश्चयं द्योतयत :। यावत् भुङ्क्ते। पुरा भुङ्क्ते।

5.विभाषा कदा---कर्ह्यो : =कदा कर्हि वा भुंङ्क्ते भॊक्ष्यते वा भोक्ता वा।  

6.किंवृत्ते लिप्सायाम् =कं कतरं कतमं वा भोजयसि, भोजयिष्यसि, भोजयिता असि वा। (भविष्यति लट् वा स्यात्।

7.लिपमान---सिद्धौ च =य :अन्नं ददाति, दास्यति,  दाता वा, स: स्वर्गं याति, यास्यति, याता वा।   

8.लोट् अर्थ---लक्षणे चं  =लोट् ---अर्थ : प्रैषादि : लक्ष्यते येन तस्मिन् अर्थे वर्तमानात् धातो : भविष्यति लट् वा स्यात्। कृष्ण चेत् भुङ्क्ते, त्वं गा : चारय।

9.लिट् च ऊर्ध्व---मौहूर्तिके =मुहूर्तात् उपरि उपाध्याय : चेत् आगच्छेत्, आगच्छति, आगमिष्यति वा आगन्ता वा, त्वं छन्द : अधीष्व।

10.तुमुन्---ण्वुलौ क्रियायां क्रिया---अर्थायाम् =क्रिया---अर्थायाम् क्रियायाम्---उपपदे भविष्यति अर्थे धातो : एतौ स्त :। कृष्णं द्रष्टुं याति, कृष्णं दर्शक : याति।

11.भाव---वचना : च =भाव---अधिकृत्य वक्ष्यमाण घञ्---आदय : क्रियायां क्रिया---अर्थायां भविष्यति स्यु :। यागाय याति।

12.अण् कर्मणि च =कर्मणि उपपदे क्रियायां क्रिया---अर्थायां च अण् स्यात्। काण्डलाव : व्रजति।

13.लृट्(lrut) शेषे च =भविष्यत् अर्थात् धातो : लृट् (lrut) स्यात् क्रियायां क्रिया---अर्थायां असत्यां सत्यां च।

14.लृट :(lrut) सत्--- वा =व्यवस्थित---विभाषा इयम्। तेन अप्रथम—-समनाधिकरणे प्रत्यय---

उत्तरपदयो : लक्षण---हेत्वो : च संबोधने नित्यम्।

15.अनद्यतने लुट् =भविष्यति अनद्यतने अर्थे धातो : लुट् स्यात्।

16.पद---रुज---विश---स्पृश : घञ् =पाद :। रोग :। वेश :। स्पर्श :। भविष्यति इति निवृत्तम्।

17.सृ स्थिरे =सार :।

18.भावे =पाक :।

19.अकर्तरि च कारके संज्ञायाम् =कर्तृ---भिन्ने कारके घञ् स्यात्। राग :।

20.परिमाण---अख्यायां सर्वेभ्य : =एक---कुण्डल---निचाय :। द्वौ शूर्प---निष्पावौ। द्वौ कारौ।

21.इङ : च =उपेत्य अस्मात् अधीते =उपाध्याय :।

22.उपसर्गे रुव : =संराव :। उपसर्गे किम् ? रव :।

23.समि यु---द्रु---दुव : =संयाव :। संद्राव :। संदाव :।

24.श्रि---णी---भुव : अनुपसर्गे =श्राय :। नाय :। भाव :। अनुपसर्गे किम् ? प्रश्रय :। प्रणय :। प्रभव :।

25.वौ क्षु---श्रुव : =विक्षाव :। विश्राव :। वौ किम् ? क्षव :। श्रव :।

26.अव---उदो : निय : =अवनाय : =अध : नयनम्।

27.प्रे द्रु---स्तु---स्रुव : =प्रद्राव :। प्रस्ताव :। प्रस्राव :। प्र इति किम् ? द्रव:। स्तव :। स्रव :।

28.नि: अभ्यो : पूल्वो : =निष्पाव : =धान्य---विशेष :। अभिलाव :। नि:---अभ्य : किम् ? पव :। लव :।

29.उत्---न्यो : ग्र : =उद्गार :। निगार :। उत्---न्यो : किम् ? गर :

30.कॄ धान्ये =उत्कार :। निकार :। धान्ये किम् ? भिक्षा---उत्कर :।

31.यज्ञे समि स्तुव : =समेत्य स्तुवन्ति यस्मिन् देशे छन्दोगा : स : देश : =संस्ताव :। यज्ञे किम् ? संस्तव : =परिचय :।

32.प्रे स्त्रो : अयज्ञे =प्रस्तार :। अयज्ञे किम् ? बर्हिष : प्रस्तर : =मुष्टि---विशेष :।

33.प्रथने वौ अशब्दे =वि पूर्वात् स्तृणाते : घञ् स्यात् अशब्द---विषय---प्रथने पटस्य विस्तार :। प्रथ्ने किम् ? तृण---विस्तर :। अशब्दे किम् ? ग्रन्थ---विस्तर :।

34.छन्द : नाम्नि च =विष्टार---पङ्क्ति : छन्द :। विस्तीर्यन्ते अस्मिन् अक्षराणि इति अधिकरणे घञ्। तर : =कर्मधारय :।

35.उदि ग्रह : =उद्ग्राह :।

36.समि मुष्टौ =संग्राह :। मुष्टौ किम् ? द्रव्यस्य संग्रह :।

37.परि---न्यो : नी---इणो : द्यूत---अभ्रेषयो : =परि पूर्वात् नयते : नि पूर्वात् इण : च घञ् स्यात् क्रमेण द्यूते अभ्रेषे च विषये।परीणायेन (शारान् ?) हन्ति। एष अत्र न्याय :। परिणय : = विवाह :। न्यय  =: नाश:।

38.परौ अनुपात्यय इण : =क्रम---प्राप्तस्य अनतिपात : अनुपात्यय :। कालस्य पर्यय : =अतिपात :।

39.वि---उपयो : शेते : पर्याये =तव विशाय :। राज---उपशाय :। पर्याये किम् ? विशय : =संशय :। (?)  उपशय : =समीप---शयनम्।

40.हस्त---आदाने चे : अस्तेये =पुष्प---प्रचाय :। हस्त---आदाने किम् ? वृक्ष---अग्रस्थानां फलानां यष्ट्या प्रचयं करोति। अस्तेये किम् ? पुष्प---प्रचय : चौर्येण।

41.निवास---चिति---शरीर---उपसमाधानेषु आदेश : च क : =एषु  चिनीते : घज् आदेश : च क :। उपसमाधानं राशीकरणं तत् च धातु---अर्थ :। काशी---निकाय :। आकायम् अग्निं चिन्वीत। शरीरं कायम्। समूहे गोमय---निकाय :।

42.संघे च अनौत्तराधर्ये =चे : घञ् आदेश : च क :। चे : घञ् आदेश : च क :। भिक्षु---निकाय :।

संघ : =प्राणि---समूह :। अनौत्तराधर्ये किम् ? सूकर---निकाय :। संघे किम् ? ज्ञान---कर्म---समुच्च्य :।

43.कर्म---व्यतिहारे णच् स्त्रियाम् =स्त्रीलिङ्गे भावे णच् स्यात् कर्म---व्यतिहारे। व्यावक्रॊशी। व्यावहासी।
 44.अबिविधौ भावे इनुण् =अण् इनुण :। इन् अणि(इनुणि) अनपत्ये =सांराविणं वर्तते।

45.आक्रोशे अव---न्यो : ग्रह : =अव नि एतयो : ग्रहे : घञ् स्यात् शापे। अवग्राह : ते भूयात्।

अभिभव : इति अर्थ :। निग्राह : ते भूयात्। बाध : इति अर्थ :। आरोशे किम् ? अवग्रह : पदस्य। निग्रह : चोरस्य।

46.प्रे लिप्सायाम् =पात्र---प्रग्राहेण चरति भिक्षु :।

47.परौ यज्ञे =उत्तर : परिग्राह :। स्फयेन वेदे : स्वीकरणम्।

48.नौ वॄ धान्ये =नीवारा :। धान्ये किम् ? निवरा कन्या।

49.उदि श्रयति---यौति---पू---द्रुव : =उच्छ्राय :। उद्याव :। उत्पाव :। उद्राव :।

50.विभाषा ङि रु---प्लवो : =आराव :. आरव :। आप्लाव :,  आप्लव :।

51.अवे ग्रह : वर्ष---प्रतिबन्धे =विभाषा इति वर्तते। अवग्रह :। अवग्राह :। वर्ष्---प्रतिबन्धे किम् ? अवग्रह : पदस्य।

52.प्रे वणिजाम् =तुला---प्रग्राहम् or तुला--प्रग्रहम्।

53.रश्मौ च =प्रग्राह :। प्रग्रह :।

54.वृणोते : आच्चादने =प्रवार :। प्रवर :।

55.परौ भुवौ अवज्ञाने =परिभाव :। परिभव :। अवज्ञाने किम् ? सर्वत : भवनं परिभव :।

56.ए : अच् =चय :। जय :।पाण :।

57.ऋत्---ओ : अप् =ऋ---वर्ण---अन्तात्, उ---वर्ण---अन्तात् अप्। कर :, गर :,यव :, लव :, स्तव :,

पव :, शर :।

58.ग्रह---वृ---दृ---निश्चि---गम : च =ग्रह :। वर :। दर :। निश्चय :। गम :।

59.उपसर्गे अद : =प्रघस :।(Refer 38th सूत्र of 4th पाद of 2nd अध्याय : =घञ्---अपो : च।))

60.नौ ण च =नौ उपपदे(उपसर्गे) अदे : ण : स्यात् अप् च। न्याद :। निघस :।

61.व्यध---जपो : अनुपसर्गे =अप् स्यात्। व्यध :। जप :। उपसर्गे तु आव्याध :। उपजाप :।

62.स्वन---हसो : वा =अप् पक्षे घञ्। स्वन :, हस :। स्वान : हास :। उपसर्गे घञ् एव । प्रस्वान :। प्रहास :।

63.यम : सम्---उप---निविषु =संयम :, संयाम :। उपयम :, उपयाम :। नियम :, नियाम :।

64.नौ गद---नद---पठ---स्वन : =निगद :, निगाद :। निनद : निनाद :। न्पठ :, निपाठ :। निस्वन :, निस्वान :।

65.क्वणे वीणायां च =निक्वण :, निक्वाण :।

66.नित्यं पण : परिमाणे =मूलक---पण :। शाक---पण :। परिमाणे किम् ? पाण :।

67.मद : अनुपसर्गे =धन---मद :। उपसर्गे =उन्माद :।

68.प्रमद---संमदौ हर्षे =हर्शे किम् ? प्रमाद :।संमाद :।

69 .सम्--उद : रज :पशुषु =सं---पूर्व :अजि : समुदाये उत्---पूर्वस्य प्रेरणे तस्मात् प्शु---विषयकात् अप् स्यात्। समज : =पशूनां संघ :। उदज : पशूनां प्रेरणम्। पशुषु किम् ? समाज : ब्राह्मणानाम्। उदाज : क्षत्रियाणाम्।

70.अक्षेषु ग्लह  =अक्षस्य ग्लह :। अक्षेषु किम् ? पादस्य ग्राह :।(ग्लाह : ?।)

71.प्रजने सर्ते : =प्रजनं प्रथम---गर्भ---ग्रहण्म्। गवां उपसर :।

72.ह्व : संप्रसारणं च नि---अभि---उप---विषु =निहव :, अभिहव :, उपहव:, विहव :। एषु किम् ?

प्रह्वाय :।

73.आङि युद्धे =आहव :। युद्धे किम् ? आह्वाय :।

74.निपानम् आहाव =अहाव :।(smaall water tub constructed near a well.)

75.भावे अनुपसर्गस्य =हव :।

76.हन : च वध : =चात् घञ्। वध :, घास :।

77.मूर्तौ घन : =मूर्ति : =काठिन्यम्। अभ्र---घन :।

78.अन्तर्घन : देशे =वाहीक---ग्राम---विशेषस्य संज्ञा इयम्। अन्तर्घण इति पाठान्तरम्।

79.अगार---एकदेशे प्रघण : प्रघाण : च =द्वार--- देशे प्रकोष्ठौ अलिन्दौ आभ्यन्तरौ बाग्व : च। तत्र बाह्ये प्रकोष्ठे निपातनम् इदम्।

80.उद्घन : अत्याधानम् =अत्याधानम् =उपरि स्थापनम्। काष्ठे अन्यानि काष्ठानि स्थापयित्वा तक्ष्यन्ते   तत् उद्घन :।

81.अपघन : अङ्गम् =पाणि : or पाद :। अपघात : अन्य :।

82.करणे अय :--- वि---द्रुषु =अय :हन्यते अनेन इति अयोघन : । विघन :। द्रुघन : or द्रुघण : =

कुठार :।

83.स्तम्बे क च =(करणे) स्तम्बघ्न :, स्तम्ब---घन :।

84.परौ घ : =(करणे) परिघ :।

85.उपघ्न : आश्रये =आश्रय : =सामीप्यम्। पर्वतेन उपहन्यते सामीप्येन गम्यते =उपघ्न :।

86.संग---उद्घौ गण---प्रशम्सयो : =संघ : =गण :। उद्घ : =प्रशंस :।

87.निघ : निमितम् =निघा : वृक्षा : =समारोह---परिणाहा : इति अर्थ :। समन्तात् निमितम् =निमितम्।

88.ड्वित : क्त्रि : =अयं भाव : स्वभावात्। उप्त्रिमम्।

89.ट्वित : अथुच् =अयं भाव : स्वभावात्।टुवेपृ =वेपथु :। श्वयथु :।

90.यज---याज---यत--विच्छ---प्रच्छ---रक्ष : नङ् =यज्ञ :, याञ्चा, यत्न :, विश्न :, प्रश्न :, रक्ष्ण :।

91.स्वप : नन् =स्वप्न :।

92.उपसर्गे घो : कि : =प्रधि :। अन्तर्धि :। उपाधि :।

93.कर्मणि अधिकरणे च =जलानि धीयन्ते अस्मिन् इति जलधि :।

94.स्त्रियां क्तिन् =(भावे) कृति :। चिति :।

95.स्था---गा---पा---पच : भावे =प्रस्थिति :। संगीति :। संपीति :। पक्ति :|

96.मन्त्रे वृष---इष---पच---मन---विद---भू---वी---रा : उदात्त : =वृष्टिं दिव :। सुम्नम् इष्टये पचात् पक्तीरुत। इदं ते नव्यसी मति :। वित्ति :। भूति :। अग्न आयाहि वीतये। रातौ स्यामो भयास :।

97.ऊति---यूति---जूति---साति---हेति---कीर्तय : च =एते निपात्यन्ते। अवे : ऊति :।

98.व्रज---यजो : भावे क्यप् =वज्या। इज्या।

99.संज्ञायां समज----निषद---निपत---मन---विद---षुञ्---शीङ्---भृञ्---इण : =समजा =सभा।

निषद्या =आपण :। निपत्या =पिच्छिल =भूमि :। मन्या =गल---पार्श्व---शिरा। विद्या।

सुत्या =अभिषव :।शय्या। भृत्या। इत्या =शिबिका।

100.कृञ : श च -क्यप् =कुत्या। चात् क्तिन् कृति :। 

101.इच्छा =इषे : भावे यक् अभाव : च शे निपायते। =इच्छा।

102.अ प्रत्ययात् =प्रत्यय---अन्तेभ्य : धातुभ्य : स्त्रियाम् अकार---प्रत्यय : स्यात्। चिकीर्षा। पुत्र---काम्या ।

103.गुरो : च हल : =गुरुमत : हल्---अन्तात् स्त्रियाम् अकार :स्यात्। ईहा। ऊहा। गुरो : किम् ?

भक्ति :। हल : किम् ? नीति :।

104.षित्---भिद्---आदिभ्य : अङ् =जॄष् =जरा। त्रपुष् =त्रपा। भिदा।(विदारण एव अयम्।)   भित्ति : अन्या। छिदा =मृजा।

105.चिन्ति---पूजि---कथि---कुम्बि---चर्च : च =चिन्ता। पूजा। कथा। कुम्बा।  चर्चा।

106.आत् : च उपसर्गे =(अङ् स्यात्) प्रदा। उपदा।

107.णि आस---श्रन्थ : युच् =करणा। हरणा। आसना। श्रन्था।

108.रोग---आख्यायां ण्वुल् बहुलम् =प्रच्छर्दिका। प्रवाहिका। विचर्चिका। क्वचित् न  =शिर : अर्ति :।

109.संज्ञायाम् =उद्दाल---पुष्प---भञ्जिका।
110.
विभाषा आख्या---परिप्रश्नयो : इञ् च =परिप्रश्ने आख्याने चगम्ये इञ् स्यात् चात् ण्वुल्। विभाषा---उक्ति : यथा---प्राप्तम् अन्ये अपि। कां त्वं कारिं कारिकां क्रियां  कृत्यां कृतिं वा अकार्षी :। सर्वां कारिं कारिकां क्रियां कृत्यां कृतिं वा अकार्षम्।        

111.पर्याय---अर्हण---उत्पत्तिषु ण्वुच् =पर्याय : =परिपाटीक्रम :। भवत : आसिका। अर्हणम् अर्ह :। योग्यता। भवान् इक्षु---भक्षिकाम् अर्हति। उत्पत्तौ =इक्षु---भक्षिका उपपादि।        

112.आक्रोशे नञ्यनि : =विभाषा इति निवृत्तम्। नञि उपपदे नि : स्यात् आक्रोशे। अजीवनि : ते शठ भूयात्। आप्रयाणि :।

113.कृत्य---ल्युट : बहुलम् =भावे कर्तरि च कारके संज्ञायाम् इति च निवृत्तम्। राज्ञा भुज्यन्ते राज---भोजना : शालय :।

114.नपुंसके भावे क्त : =हसितं रुदितम्।

115.ल्युट् च =हसनं रोदनम्। योग---विभाग : उत्तरअर्थ :।

116.कर्मणि च येन संस्पर्शात् कर्तु : शरीर---सुखम् =येन स्पृश्यमानस्य कर्तु : शरीर ---सुखम् उत्पद्यते तस्मिन् कर्मणि उपपदे ल्युट् स्यात्। पय : पानं सुखम्। कर्तरि इति किम् ? गुरो : स्नापनं सुखम्।  इह गुरु : कर्म।        

117.करण---अधिकरणयो : च =खल :(खल्) प्राक् करण---अधिकरनयो : अधिकार :। इध्म---प्रवश्चन : कुठार :। गो---दोहनी स्थाली।

118.पुंसि संज्ञायां घ : प्रायेण =दन्ता : छद्यन्ते अनेन =दन्तच्छद :। आकुर्वन्ति  अस्मिन् आकर :।

119.गोचर---संचर---वह---व्रज---व्याज---आपण---निगमा : च =एते निपाता :। गोचर : =Grd.

संचर =मार्ग। वह : =स्कन्ध :। व्रज :, व्यज : =ताल---वृन्तम्। आपण : =Bazaaar. | चात् कष :। निकष :।

120.अवे तर---स्त्रो : घञ् =अवतार : =कूप---आदे :। अव्स्तार : जवनिका | (Curtain)

121.हल : च =हल् अन्तार् घञ् =रमने अस्मिन् योगिन : इति राम :। अपमृज्यते अनेन रोगा : इति अपामार्ग :।        

122.अध्याय---न्याय---उद्याव---संहारा : च =अधीयन्ते अस्मिन् इति अध्याय :।

123.उदङ्क : अनुदके =घृत---उदङ्क : =चर्ममयं---भाण्डम्। अनुदके किम् ? उदक : उदञ्चन :।

124.जालाम् आनाय : = आनीयन्ते मत्स्य---आदय : अस्मिन् इति अनाय :।(net by which fishermen catch fishes.)

125.खन : घ च = चात् घञ्। आखन :। आखान :।

126.ईषत्---दु: ---सुषु कृच्छ्र---अकृच्छ---अर्थेषुखल् =कृच्छ्रे =दुष्कर :। अकृच्छ्रे =ईषत्कर :। सुकर  :।

127.कर्तृ---कर्मणो : भू---कृञो : =दुराढ्यंभवम्। ईषत्---आढ्यंकर :।

128.आत : युच् =ईशत्पान :। दुष्पान :। सुपान :।

129.छन्दसि गति--अर्थेभ्य : =सूप---सदन : अग्नि :।(गत्यर्थेभ्य :।

130.अन्येभ्य : अपि दृश्यते =सुवेदनांम् अकृणोत् ब्राह्मणे गाम्।(गत्यर्थेभ्य :।

131.वर्तमान---सामीप्ये वर्तमानवत् वा =Present tense is used for future tense/past tense, when the action takes place immediately aftet/before present tense. कदा आगत : असि ? अयम् आगच्चामि। अयम् आगमम्। कदा गमिष्यासि ? एष गच्छामि or गमिष्यामि।       

132.आशंसायां भूतवत् च =वर्तमान---सामीप्य : इति वर्तते। देव : चेत् अवर्षत्, वर्षति, वर्षिष्यति वा।

धान्यम् अवाप्स्म, वपाम :, वप्स्याम : वा।

133.क्षिप्र---वचने लृट्(lrut) =वृष्टि : चेत् क्षिप्रं यास्यति। सीघ्रं वप्स्याम :।

134.आशंसा---वचने लिङ् =गुरु : चेत् आयात् आशंसे अधीयीय। आशंसे शीघ्रम् अधीयीय।

135.न अनद्यनवत् क्रिया---प्रबन्ध---सामीप्ययो : =क्रियाया : सातत्ये सामीप्ये च गम्ये लङ् लुटौ न।

यावत्---जीवम् अन्नम् अदात् दास्यति वा।

136.भविष्यति मर्यादा---वचने अवरस्मिन् =भविष्यति काले मर्यादा---उक्तौ अवरस्मिन् प्रविभागे अनद्यनवत् न। य : अयम् अध्वा गन्तव्य : आपाटलिपुत्रात् तस्य यत्---अवरं कौशाम्ब्या : तत्र स्क्तून् वप्स्याम :।

137.काल---विभागे च अनहोरात्राणाम् =य :अयं वत्सर :आगामी तस्य यत् अवरम् आग्रहायण्या : तत्र युक्ता : अध्येष्यामहे।

138.परस्मिन् विभाषा =य : अयं वत्सर : आगामी तस्य यत् परम् अद्येष्यामहे, अध्येतास्महे।

139.लिङ् निमित्ते लृङ्(lrung) =क्रिया---अतिपत्तौ भविष्यति इति एव =सुवृष्टि चेत् अभविष्यत् सुभिक्ष्यम् अभविष्यत्।

140.भूते च =पूर्व---सूत्रं संपूर्णम् अनुवर्तते। इदं सूत्रं उताप्यो : इति आदौ प्रवर्तते।(इति

विवेक :।) This सूत्र is to be studied along with the next सूत्र। 141.वा उत--- अप्यो : = वा आ उत---अप्यो : इति छेद :। उत---अप्यो : इति अत : प्राग्भूते लिङ् निमित्ते लृङ्(lrung) वा इति अधिक्रियते।

142.गर्हायां लट् अपि---जात्वो : =आभ्यां योगे लट् स्यात् काल---त्रय---योगे गर्हायाम्। अपि भार्यां त्यजसे जातु गणिकाम् आधत्से।

143.विभाषा कथमि लिङ् च =गर्हायाम् इति एव लिङ् स्यात्। चात् लट् स्यात्। कथं धर्मं त्य्जे : त्यजसि वा।

144.किंवृत्ते लिङ्---लृटौ(lrutau) =गर्हायाम् इतिएव। विभाषा तु न अनुवर्तते। क : कतर : कतम : वा हरिं  निन्देत् निन्दयिष्यति वा।

145.अनवकॢप्ति अमर्षयो : अकिंवृत्ते अपि =गर्हायाम् इति निवृत्तम्। अनवकॢप्ति : =असंभावना। अमर्ष : =अक्षमा। न संभावयामि न मर्षये वा भवान् हरिं निन्देत् निन्दयिष्यति वा।

146.किंकिला---अस्त्यर्थेषु लृट् =किंकिला इति समुदाय : क्रोध---द्योतक उपपदम्। अस्त्यर्था : =असि---भवति---विद्यते। न श्रद्धधे न मर्षये वा किंकिल त्वं शूद्र---अन्नं भोक्ष्यसे। अस्ति भवति विद्यते वा शूद्रीं गमिष्यसि। अत्र लृङ् न।

147.जातु---यदो : लिङ् =जातु यत् यदा यदि वा त्वादृश : हरिं निन्देत् न अवकल्पयामि न वा मर्षयामि।

148.यच्च---यत्रयो : =यच्च यत्र वा त्वम् एवं कुर्या : न श्रद्धधे न मर्षयामि वा।

149.गर्हायाम् च =अनवकॢप्ति ---अमर्षयो : इति निवृत्तम्। यच्च यत्र व त्वं शूद्रं याजये : अन्यायं तत्।

150.चित्रीकरणे च =यच्च यत्र वा त्वं याजये : आश्चर्यम् एतत्।

151.शेषे लृट् अयदौ =यच्च---यत्राभ्याम् अन्यस्मिन् उपपदे चित्रीकरणे गम्ये धातो : लृट् अयदौ। आश्चर्यम् अन्ध : नाम कृष्णं द्रक्ष्यति(paradoxical example is when धृतराष्त्र : कृष्णम् ददर्श यदा कृष्ण : विश्वरूपं दधार दुर्योधन---सभायाम्।) आश्चर्यं यदि स: अधीयीत।  हरि :। समर्थयो : किम् ? उत=विचार :। : दण्ड : पतिष्यति अपि धास्यति द्वारम्। प्रश्न : प्रच्छदनं च गम्यते।

इत : प्रभृति क्रिया---अतिपत्तौ भूते अपि नित्य : लङ् नित्य : लृङ्।

153.काम---प्रवेदने अकच्चिति =स्व---अभिप्राय---आविष्करणे गम्यमाने लिङ् स्यात् नतु न्कच्चिति। काम : मे भुञ्जीत भवान्। अकच्चिति किम् ? कच्चित् जीवति।

154.संभावने अलम् इति चेत् सिद्धा---प्रयोगे =अपि गिरिं शिरसा भिन्द्यात्। सिद्धा---प्रयोगे किम् ? अलं कृष्ण : हस्तिनं हनिष्यति।

155.विभाषा धातौ संभावन---वचने अयदि =संभावयामि भुञ्जीत भोक्ष्यते भवान्। अयदि किम् ? संभावयामि यत् भुञ्जीथा : त्वम्।

156.हेतु---हेतुमत : लिङ् =कृष्णं नमेत् चेत् सुखं यायात्। कृष्णं नंस्यति चेत् सुखं यास्यति।

157.इच्छा---अर्थेषु लिङ्---लोटौ =इच्छामि भुञ्जीत वा भुङ्क्तां वा भवान्। एवं कामये प्रार्थये इति आदि योगे बोध्यम्।

158.समान---कर्तृकेषु तुमुन् =अक्रिया---अर्थ---उपपदम् एतत्। इच्छति भोक्तुम्। वष्टि वाञ्छति वा।

159.लिङ् च =भुञ्जीय(भुञ्जीये) इति इच्चति। 

160.इच्छा---अर्थेभ्य : विभाषा वर्तमाने =लिङ् स्यात्। लिङ् स्यात्। पक्षे लट्।

161.विधि---निमन्त्रण---आमन्त्रण---अधीष्ट---संप्रश्न---प्रार्थनेषु लिङ् =विधि : =प्रेरणम्। निमन्त्रणम् =नियोग---करणम्। आवश्यके श्राद्ध---भोजन---आदौ दौहित्र---आदे : प्रवतनम्। आमन्त्रणम् =कामचारअनुज्ञा। अधीष्ट =सत्कार---पूर्वक : व्यापार :। संप्रश्न : ।

162.लोट् च =लोट् च स्यात् पूर्वसूत्र---द्योत्य---अर्थेषु।

163.प्रेष---अतिसर्ग---प्राप्तकालेषु कृत्या : =प्रेष :(प्रैष :)विधि :। अतिसर्ग : =कामचार---अनुज्ञा। भवता यष्टव्यम्। भवान् यजताम्। त्वया गन्तव्यम्। गमनीयम्। गम्यम्।

164.लिङ् च ऊर्ध्व---मौहूर्तिके =प्रष---आदय : अनुवर्तन्ते। मुहूर्तात् ऊर्ध्वं यजेत। यजतां वा। यष्टव्यम्।

165.स्मे लोट् =पूर्वसूत्र---विषये लिङ्। कृत्यानां च अपवाद :। ऊर्ध्वं मुहूर्तात् यजतां स्म।

166.अधीष्टे च =त्वं स्म अध्यापय।ह्हल : च---

167.काल---समय---वेलासु तुमुन् =काल : समय : वेला अनेहा वा भोक्तुम्।

168.लिङ् यदि =काल : समय : वेला वा यत् भुञ्जीत भवान्।

169.अर्हे कृत्य---तृच : च =चात् लिङ्। त्वं कन्यां वहे :।

170.आवश्यक---अधमर्णयो :(अधम---ऋणयो :) णिनि : =अवश्यंकारी। शतं दायी।

171.कृत्या : च =अवश्यं हरि : सेव्य :। शतं देयम्।

172.शकि लिङ् =चात् कृत्या : =त्वं भारं वहे :। वोढव्य : त्वया।

173.आशिषि लिङ्---लोटौ =स्पष्टम् अर्थम्।

174.क्तिच्---क्तौ च संज्ञायाम् =भवतात्। भूति :।

175.माङि लुङ् =मा (अ)कार्षी :।

176.स्म उत्तरे लङ् च =स्म उत्तरे माङि लङ् स्यात् चात् लुङ्।

उणादय : ---इङ :---निवास---व्यधजप :---अप्घन : अङ्गम्---इच्छा---हल : च---वोताप्यो :---विधि निमन्त्रण षोडश।                                          Pro.Total =955 + 176 =1131.

                                 । इति तृतीय अध्यायस्य तृतीय---पाद : समाप्त :।

                                                           तृतीय अध्याय : चतुर्थ पाद :

1.धातु---संबन्धे प्रत्यया : =वसन् ददर्श्। भूते लट्। सोमयाज्यस्य पुत्र : भविता।

2.क्रिया---समभिहारे लोट् हि---स्वौ च त्---ध्वमो : =स्पष्टम् अर्थम्।

3.समुच्चये अन्यतरस्याम् =अनेक---क्रिया---समुच्चये द्योत्ये प्रक्---उक्तमं वा स्यात्।

4.यथा---विधि---अनुप्रयोग : पूर्वस्मिन् =अध्ये लोट् विधाने, लोट् प्रकृतिभूय : एव धातु : अनुप्रयोज्य :।

5.समुच्चये सामान्य---वचनस्य =समुच्चये लोट् विधौ सामान्य---अर्थस्य धातो : अनुप्रयोग : स्यात्।

6.छन्दसि लुङ्---लङ्---लिट : =धातु---अर्थानां संबन्धे सर्व---कालेषु एते वा स्यु :। देव : देवेभि : आगमत्। अथ लोट् अर्थे लङ्/लुङ्। इदं तेभ्यो अकरं नम :। अग्निम् अद्य होतारम् अवृणीत अयं यजमान :। लिट् =अद्य ममार। अद्य म्रियते इति।

7.लिङ् अर्थे लेट् =प्र ण आयूँषि तारिषत्।

8.उपसंवाद---आशंकयो : च =पण---बन्धे आशंकायां च लेट् स्यात्। अहम् एव पशूनाम् ईशै। नेज्जिह्नायन्त : नरकं पताम।  

9.तुम्---अर्थे से--क्सेन्---असेन्---अध्यै---अध्यैन्---कध्यै---कध्यैन्---शध्यै---शध्यैन्---तवै---तवेङ्---तवेन : =से =वक्षे राय :। क्सेन् =ता वामेषे। क्सेन् =पक्षे नित् स्वर : =गवाम् इव श्रियासे। असेन् =नित्वात् आदि : उदात्त : =शराद : जीवसे धा :। अध्यै, अध्यैन् =जठरं पृणध्यै। कध्यै, कध्यैन् =पक्षे नित् स्वर : =आहुबध्यै। शध्यै =राधस : सह मादयध्यै। शध्यैन् वायवे पिबध्यै। तवे =दातावा उ।  तवेङ् =सूतवे। तवेन् =कैर्तवे।

10.प्रै रोहिष्यै अव्यथिष्यै =एते तुम्---अर्थे निपात्यन्ते। प्रयातुम्, रोढुम् and अव्यथितुम् इति अर्थ :।

11.दृश्ये विख्ये च =द्रष्टुम्, विख्यातुम् इति अर्थ :।

12.शकि णमुल्---कमुलौ =विभाजं न अशकत्। अपलुपं न अशकत्। विभक्तु, अपलप्तुम् इति अर्थ :।

13.ईश्वरे तोसुन्---कसुनौ =ईश्वर : विचरितो :। ईश्वर : विलिख । विचरितुं, विलेखितुम् इति अर्थ :।

14.कृति---अर्थे तवै---केन्---केन्य---त्वन : =न् म्लेच्छितवै। अवगाहे। विदृक्षेण्य :। भूर्यस्पष्ट कर्त्वम्।

15.अवचक्षे च =रिपुणा न आचचक्षे। अवख्यातव्यम् इति अर्थ :।

16.भाव---लक्षणे स्था--इण्---कृञ्---वदि---चरि---हु---तमि---जनिभ्य : तोसुन् =आसंस्थातो : सीदन्ति। समाप्ते : सीदन्ति इति अर्थ :। उदेतो :। अपकर्तो :। प्रवदितो :। प्रचरितो :। होतो :। आतमितो । कामम् आवजनितो : भवाम :।:

17.सृपि---तृदो : कसुन् =भाव---लक्षणे इति एव। पुरा क्रूरस्य विसृप : विरप्शिन्। पुरा जत्रुभ्य :

आतृद :।

18..अलं---खल्वो : प्रतिषेधयो : प्राचां क्त्वा =अलं दत्वा। पीत्वा खलु, खलु उक्त्वा। अलं---खल्वो : किम् ? मा (अ)कार्षीत्। प्रतिषेधयो : किम् ? अलंकार :।

19.उदीचां माङ : व्यतीहारे =अपमित्य याचते।

20.परावर---योगे च =अप्राप्य नदीं पर्वत :।

21.समान---कर्ट्रुकयो : पूर्वकाले =पूर्वकाले-भुक्त्वा व्रजति।

22.आभीक्ष्ण्ये णमुल् च =पौन:पुन्ये द्योत्ये पूव---विषये णमुल् स्यात्। क्त्वा च। द्वित्वम्। स्मारं स्मारं नमति शिवम्। स्मृत्वा स्मृत्वा नमति शिवम्।

23.न यत् अनाकाङ्क्ष्ये =यत् अयं भुङ्क्ते तत : पठति। अनाकाङ्क्ष्ये किम् ? यत् अयं भुङ्क्त्वा व्रजति तत : अधीते।

24.विभाषा अग्रे---प्रथम---पूर्वेषु =क्त्वा णमुल् पक्षे लट् आदय :। अग्रे भोजं, अग्रे भुक्त्वा वा, प्रथमं

भोजं, प्रथमं भुक्त्वा वा, पूर्वं भोजं पूर्वं भुक्त्वा वा व्रजति। =

25.कर्मणि आक्रोशे खमुञ् =चौरङ्कारम् आक्रोशति। चोर---शब्दम् उच्चार्य इति अर्थ :।

26.स्वादुमि णमुल् =स्वादुङ्कारं भुङ्क्ते।

27.अन्यथा---एवम्---कथम्---इत्थम्---सुसिद्धाप्रयोग : चेत् =अन्यथाकारम्, एवंकारम्, कथंकारम्,  भुङ्क्ते।

सिद्धेति किम् ? शिर : अन्यथा कृत्वा भुङ्क्ते।

28.यथा---तथयो : असूया---प्रतिवचने =यथाकारम् अहं भोक्ष्ये, तथाकारं भोक्ष्ये किं तव आनने।

29.कर्मणि दृशि---विदो : साकल्ये =कन्यादर्शं वरयति। सर्वा : कन्या : इति अर्थ :। ब्राह्मणवेदं भोजयति। यं यं ब्राह्मणं जानाति, लभते, विचारयति वा तं सर्वं भोजयति इति अर्थ :।

30यावति विन्द---जीवो : =यावत् वेदं भुङ्क्ते। यावत् लबते तावत् इति अर्थ :। याज्जीवम् अधीते।

31.चर्म---उदरयो : पूरे : =चर्म---पूरं भुङ्क्ते। उदर---पूरं भुङ्क्ते।

32.वर्ष---प्रमाण : ऊलोप : च अस्य अन्यतरस्याम् =गोष्पद---पूरं वृष्ट : देव :। गोष्पद---प्रवृष्ट : देव :।

उपपदस्य मा भूत्। मूषिका--बिलप्रम्।

33.चेले : क्नोपे : =चेल---क्नोपं वृष्ट : देव :। वस्त्र---क्नोपम्। वसन---क्नोपम्। (क्नूयी शब्दे)

34.निमूल---समूलयो : कष : =निमूल---काषं कषति। समूल---काषं कषति।

35.शुष्क---चूर्ण---रूक्षेषु पिष : =शुष्क---पेषं पिनष्टि। शुष्कं पिनष्टि इति अर्थ :। चूर्ण---पेषम्। रूक्ष---पेषम्।

36.समूल---अकृत---जीवेशु हन्---कृञ्---ग्रह : =समूल---घातं हन्ति। अकृत---कारं करोति। जीव---ग्राहं गृह्णाति =जीवन्तं गृह्णाति इति।

37.करणे हन :=पाद---घातं हन्ति।(पादेन हन्ति।)

38.स्नेहने पिष : =उद---पेषं पिनष्टि। उदकेन पिनष्टि इति अर्थ :।

39.ह्सते वर्ति---ग्रहो : =हस्त---वर्तं वर्तयति। हस्तेन गुलिकां करोति। हस्त---ग्राहं गृह्णाति।

40.स्वे पुष : =स्व---पोषं पुष्णाति।

41.अधिकरणे बन्ध : =चक्र---बन्धं बध्नाति। चक्रे बध्नाति इति अर्थ :।

42.संज्ञायाम् =क्रौञ्च---बन्धं बध्नाति। मयूरिका---बन्धम्। अट्टालिका---बन्धम्।

43.कर्त्रो : जीव---पुरुषयो : नशि---वहो : =जीव---नाशं नश्यति। जीव : नश्यति इति अर्थ :। पुरुष---वाहं वहति। पुरुषं वहति इति अर्थ :।

44.ऊर्ध्वे शुषि---पूरो : =ऊर्ध्व---शोषं शोषयति।(वृक्ष :।) ऊर्ध्व---पूरं पूर्यते घट :।

45.उपमाने कर्मणि च =चात् कर्तरि। घृत---निधायं निहितं जलम्। घृतम् इव सुरक्षितम्। अजक---नाशं नष्ट :। अजक इव नष्ट :।

46.कष---आदिषु यथा---विधि अनुप्रयोग : =Refer 34th सूत्र of this पाद and apply णमुल्।

47.उपदंश : तृतीयायाम् =इत : प्रभृति पूर्व---काल : इति संबोध्य :। मूलक---उपदंशं भुङ्क्ते। मूलकेन उपदंशम्।

48.हिंसा---अर्थानां च समान---कर्मकाणाम् =तृतीय---अन्ते उपपदे अनुप्रयोग---धातुना समान---कर्मकात् णमुल् स्यात्। दण्ड---उपघातं गा: कालयति। दण्डेन उपघातम्। समान---कर्मकाणाम् इति किम् ? दण्डेन चोरम् आहत्य गा : कालयति।

49.सप्तम्यां च उप---पीड---रुध---कर्ष : =सप्तमी चात् तृतीया। पार्श्व---उपपीडं शेते। व्रज---उपरोधं गा : स्थापयति।

50.समासत्तौ =केश---ग्राहं युध्यन्ते। हस्त---ग्राहं युध्यन्ते। (3rd or 7th case.)

51.प्रमाणे च =द्व्यङ्गुल---उत्कर्षं खण्डिकां छिनत्ति।

52.अपादाने परीप्सायाम् =परीप्सा त्वरा। शय्या--उत्थायं धावति।(5th case.)

53.द्वितीयायां च =यष्टि---ग्राहं युध्यन्ते। लोष्ट---ग्राहं युध्यन्ते।

54.स्वाङे अध्रुवे =द्वितीयायाम् इति एव। अध्रुवे  स्वाङ्गे द्वितीया---अन्ते धातो : णमुल्। भ्रू---विक्षेपं कथयति। अध्रुवे किम् ? शिर : उत्क्षिप्य। येन विना न जीवनं तत् ध्रुवम्। अप्रियस्य  उच्चै :

55.परिक्लिश्यमाने च =(स्वाङ्गे)उर :---प्रतिषेधं युध्यन्ते।

56.विशि---पति---पदि---स्कन्दां व्याप्यमान---आसेव्यमानयो : =(द्वितीयागेह---आदि---द्रव्याणां विश्य---आदि क्रियाभि : साकल्येन संबन्ध : =व्याप्ति :। पौन:पुन्यम् आसेवा। गेह---अनुप्रवेशम् आस्ते। गेहअनुप्रपातम्। गेह---अनुप्रपादम्। गेह---अनुस्कन्दम्।

57.अस्यति---तृषो : क्रिया---अन्तरे कालेषु =द्व्यहम् अत्यासम्। द्व्यह---अत्यासं गा : पाययति। द्व्यह---तर्षम्।

58.नाम्न्या दिशि---ग्रहो : =द्वितीयाम् इति एव। नामा(नाम)--- आदेशम् आचष्टे। नाम---ग्राहम् आह्वयति।

59.अव्यये अयथा---अभिप्रेत---आख्याने क्त्वा---णमुलौ =अयाथा---अभिप्रेत---आख्यानं नाम अप्रियस्य उच्चै : प्रियस्य नीचै : कथनम्। उच्चै :कृत्य,  उच्चै : कृत्वा,  उच्चै:कारम् अप्रियम् आचष्टे। नीचै:कृत्य, नीचै : कृत्वा, नीचै : कारं प्रियं ब्रूते।

60.तिर्यचि अपवर्गे =तिर्यक्कृत्य, तिर्यक् कृत्वा, तिर्यक्कारं(समाप्य) गत :। अपवर्गे किम् ? तिर्यक् कृत्वा काष्ठं गत :।  

61.स्वाङ्गे तस् प्रत्यये =मुखत : कृत्वा, मुखत : भूत्वा। मुखत :कारम्, मुखत : भावम्।

62.नाना---अर्थ---प्रत्यये अच्व्यर्थे =ननाकृत्वा। नानाकरम्।

63.तूष्णीमि भुव : =तूष्णींभूय। तूष्णीं भूत्वा। तूष्णींभावम्।

64.अन्वचि आनुलोम्ये =अन्वग्भूय आस्स्ते।

65.शकधृष---ज्ञा---ग्ला---घट---रभ---लभ---क्रम---सह---अर्ह---अस्ति अर्थेषु तुमुन् =एषु उपपदेषु  धातो : तुमुन् स्यात्। शक्नोति भोक्तुम्।

66.पर्याप्ति---वचनेषु अलम् अर्थेष् =पर्याप्ति : पूर्णता। पर्याप्त : भोक्तुं प्रवीण :। पर्याप्ति---वचनेषु किम् ? अलं भुक्त्वा। अलम् अर्थेषु किम् ? पर्याप्तिं भुङ्क्ते।

67.कर्तर् कृत् =कृत् प्रत्यय : कर्तरि स्यात्।

68.भव्य---गेय---प्रवच्नीय---उप्स्थानीय---जन्य---आप्लाव्य---आपात्या वा =एते कृत्यन्ता : कर्तरि वा  निपात्यन्ते। (वा-सकर्मक---अकर्मक---भावकर्मणि।)

69.ल : कर्मणि च भावे च अकर्मकेभ्य : =लकारा : सकर्मकेभ्य : कर्मणि कर्तरि च स्यु :।

अकर्मकेभ्य : भावे कर्तरि।

70.तयो :एव कृत्य---क्त---खल्---अर्था : =एते भाव---कर्मणो एव स्यु :।

71.आदि कर्मणि क्त : कर्तरि च =आदि कर्मणि य : क्त : स : कर्तरि स्यात्। चात् भाव---कर्मणो :।

72.गति---अर्थ---अकर्मक---श्लिष---शीङ्---स्था---आस---वस---जन---रुह---जीर्यतिभ्य : च =गंगां गत :। पक्षे प्राप्ता गंगा। शिवाम् उपासित :। लक्षीम्  आश्लिष्ट : हरि :।

73.दाश---गोब्नौ संप्रदाने =एते संप्रदाने कारके निपात्यन्ते। दशन्ति तस्मै दाश :। गां हन्ति तस्मै गोघ्न : अतिथि :।

74.भीम---आदय : अपादाने =भीम :, भीष्म : etc.

75.ताभ्याम् अन्यत्र उण्---आदय : =संप्रदान---परामर्श---अर्थं ताभ्याम् इति। तत :असौ तन्तु :। वृत्तं तत् इति वर्त्म। चरितं तत् इति चर्म।

76.क्त : अधिकरणे च ध्रौव्य गति---प्रत्यवसान---अर्थेभ्य : च =एभ्य : अधिकरणे क्त : स्यात्। चात् यथा---प्राप्तम्। मुकुन्दस्य असित---मितम्। ध्रौव्यं, स्थैर्यम्।

77.लस्य =अधिकार : अयम्।

78.तिप्--तस्---झि---सिप्---थस्--- -थ---मिप्---वस्---मस्---ता---तां---झ---थास्---थां---ध्वम्---इट्---वहिङ्---महिङ् =एते अश्टादश ल---आदेशा : स्यु :।

79.थास : से =टित : आत्मनेपदानं टे : ए =टित : लस्य अत्मनेपदानां टे : एत्वं स्यात्। एधते।

80.थास : से =टित : लस्य थास : से स्यात्। एधसे।

81.लिट : त---झयो : एश् इरेच् =लिट् आदेशयो : तझयो : एश्---इरच् एतौ स्त :। एकार---उच्चारणं ज्ञापकं तङ्---आदेशानां टे : एत्वं न इति।

82..परस्मैपदानां णलतुसुस्थलथुसण्ल्वमा : =लीट : तिप्---आदीनां नवानां णल्---आदय : नव : स्यु :।

83.विद : लट : वा =वेत्ते : लट : णल्---आदय : वा स्यु :।

84.ब्रुव : पञ्चानाम् आदित : आह : ब्रुव : =ब्रुव : लट : परस्मैपदानाम् आदित : पञ्चानाम्

आदित : :णल्---आदय : पञ्च : वा स्यु : ब्रुव : च आह---आदेश :।

85.लोट : लङ्वत् = लोट : लङ् इव कार्यं स्यात्। तेन ताम् आदय : सलोप : च (तथा  "हि ")

86..ए : रु : = लोट : इकारस्य उ : स्यात्।(भवतु।)

87.से : हि अपित् च =से : हि : स्यात् स : अपित् च।

88.वा छन्दसि =हि : अपित् वा।

89.मे : नि : स्यात् =लोट : मे : नि : स्यात्।

90.आम् एत : =लोटस्य आं स्यात्  एधताम्। एधेताम्। एधन्ताम्।

91.स---वाभ्यां व---आमौ =स---वाभ्यां परस्य लोट्---एत : क्रमात् व आम् एतौ स्त :। एधस्व। एधेताम्। एधध्वम्।

92.आट् उत्तमस्य पित् च =लोत् उत्तमस्य आट् आगम : स्यात् स : पित् च। हि---न्यो : उत्वं न। इकार---उच्चारण---असामर्त्यात्। भवानि। भवाव। भवाम।

93.एत : ऐ =लोट् उत्तमस्य एत : ऐ स्यात्। आम : अपवाद :। एधै। एधावहै। एधामहै।

94.लेट : अट्---आटौ = लेट : अट् आट् स्यात्। आगमौ स्त : तौ च पित्तौ।

95.आत : ऐ =लेट : आकारस्य ऐ स्यात्। स्तेभि : सुप्रयस मादयै ते।

96.वा एत : अन्यत्र =लॆट : एकारस्य ऐ स्यात् वा। आत : ऐ इति अस्य विषयं विना। पशूनाम् ईशै।

ग्रहा : गृह्णन्तै। अन्यत्र किम् ? सुप्रयस मादयै ते।

97.इत : च लोप : परस्मैपदेषु =लॆट : तिङाम् इत : लोप : वा स्यात्।

98.स : उत्तमस्य =लेट् उत्तम सकारस्य वा लोप : स्यात्। करवाव। करवाव :।

99.नित्यं ङित : =सकारस्य ङित् उत्तमस्य नित्यं लोप : स्यात्। भवत्तं भवन्तु। ? 

100.इत : च =ङित : लस्य परस्मैपदम्---इकार---अन्तं य्त् तस्य लोप : स्यात्। अभवत्।

101.तस्थस्थामिपां तांतंताम : =ङित :चतुर्णां तामादय : क्रमात् स्यु :

102.लिङ् : सीयुत् = स---लोप :। एधेत। एधेयाथाम्।

103.यासुट् परस्मैपदेषु उदात्त : ङित् च =लिङ :परस्मैपदानां यासुट् आगम : स्यात्। स् अ: उदात्त : ङित् च।

104.कित् आशिषि =आशिषि लिङ : यासुट् कित् स्यात्। भूयात्। भूयास्ताम्। भूयासु :।

105.झस्य रन् =लिङ : झस्य रन् स्यात्। एधेरन्।

106.इट : अत् =लिङ् आदेशस्य इट : अत् स्यात्। एधेरन्।

107.सुट् तिथो : लिङ : सकार थकारयो : सुट् स्यात्। सुटा यासुत् न बाध्यते।

108.झे : जुस् =लिङ : झे : जुस् स्यात्। ज : इत्। भवेयु :।

109.सिच्--- अभ्यस्त---विदिभ्य : च = सिच : अभ्यस्तात् विदे : च परस्य ङित् संबन्धिन : झे : जुस् स्यात्।

110.आत : =सिच् लुक् यात् अन्तात् झे : जुस् स्यात्। अभूवन्।

111.लङ : शाकटायस्य एव =अत् अन्तात् परस्य लङ : झे : जुस् वा स्यात्। अयु :। अयान्। यायात् यायाताम्। यायास्ताम्।

112.द्विष : च =लङ : झे : जुस् वा स्यात्। अद्विषु :। अद्विषन्।

113.तिङ्---शित्---सार्वधातुकम् =तिङ : शित :च धातु---अधिकार---उक्त : एतत् संज्ञा : स्यु :।

114.आर्धधातुकं शेष : =तिङ्---शित्---वच : अन्त्य : धातो : विहित : प्रत्यय : एतत् संज्ञ : स्यात्। इट्।

115.लिट् च =लिट्---आदेश---तिङ्---आर्धधातुक---संज्ञ : एव स्यात्।

116.लिङ् आशिषि =आशिषि तिङ् आर्धधातुक---संज्ञ : एव स्यात्।

117.छन्दसि उभयथा =धातु---अधिकारे उक्त : प्रत्यय : सार्वधातुक---आर्धधातुक---उभय---संज्ञ : स्यात्। वर्धन्तु वा सुष्ठुतय :। वर्धयन्तु इति अर्थ :। णि लोप : =विशृण्विरे।

धातुसम्बन्धे---समानकर्तृकयो :---अधिकारणे---स्वाङ्गे---लिट---स्थस्थामिपां सप्तदश।

                                         इति तृतीय---अध्यायस्य चतुर्थ---पाद : समाप्त :। 

                            । तृतीय : अध्याय : समाप्त : । Pro.Total =1131 + 117 =1248 

 

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